बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

400 years old village-400 साल पुराना गांव-खुड्डा लाहौरा

चंडीगढ़

कभी 35 घर और आबादी 250 थी...। मतदाताओं की संख्या मात्र 180...। समय के साथ-साथ गांव खुड्डा लाहौरा में अमूल चूल बदलाव आए। आज यहां की जनसंख्या करीब 15 हजार है। साथ ही लोगों ने अपने जरूरत की सभी सुविधाएं भी जुटा ली है। 

इसको पंजाब के तपा मंडी (संगरूर) के धालीवाल परिवार और गांव बिरपणा (संगरूर) के धालीवालों के रिश्तेदार सराओ के परिवार ने इस गांव को बसाया था। इसके अलावा मोहाली के सहोता, गांव खेड़ा (फतेहगढ़ साहिब) के कट्टू, गांव चैदां (संगरूर), गांव नंगला (लुधियाना), के नारद और पिंड रल्ला जोगा (मानसा) के चाहल भाईचारे ने बांधा था। 

इस गांव के मान गोत के इकलौते परिवार के मुखिया मनमोहन सिंह करीब एक दशक ये सरपंच रह चुके हैं। वर्तमान में पूरन चंद के पोते राकेश शर्मा सरपंच हैं। इससे पहले राकेश शर्मा की मां सरपंच रह चुकी हैं। लोगों का मानना है कि गांव का इतिहास करीब चार सौ साल का है। आज भी गांव की शान हरिबाबा का स्थान और पुराना पीपल का पेड़ है।

गेहूं और धान की होती है फसल

इस गांव का रकबा 750 एकड़ है। कभी यहां पर कनक, धान, मक्की, मूंगफली, गन्ना, तिल, चना आदि फसल खूब होती थी। अब केवल गेहूं और धान की खेती के अलावा पशुओं के चारे की खेती होती है। यहां के लोग नीलगाय और जंगली सूअर से परेशान है। ये फसलों को तबाह कर रहे हैं।

1901 में बना था लोअर मिडिल स्कूल

इस गांव में वर्ष 1901 में बना लोअर मिडिल स्कूल के पहले विद्यार्थी इस गांव के सरपंच राकेश शर्मा के दादा पूरन चंद थे। अब यह स्कूल अपग्रेड होकर सीनियर सेकेंडरी हो गया है। गांव में भाईचारा कायम रहे इसके लिए अलग-अलग कुआं थे। गांव के पास अभी भी करीब 450 एकड़ जमीन बची है। पहले इस गांव के साथ लगते गांव खुड्डा जस्सू के साथ पंचायत थी। 1973 में गांव की अलग पंचायत बनी।

अब यह है हाल
गांव की जनसंख्या---15000
मकान-----------4000
वोटर-------3500

यह हैं सुविधाएं

गांव में अच्छा पार्क, पीने का पानी, सीवर सिस्टम, स्टार्म वाटर की बेहतर व्यवस्था है। गलिया पक्की, फिरनी के चारों ओर पेवर ब्लॉक लगे हैं। डबल स्टोरी धर्मशाला। वेटनरी सब सेंटर, हेल्थ सेंटर, सीनियर सेकेंडरी स्कूल की व्यवस्था है। साथ ही गांव में तीन मंदिर, एक गुरुद्वारा, एक गुग्गामाड़ी मंदिर के अलावा हरिपुर वाले बाबा का स्थान भी है।

ये हैं लोगों की मांगे

गांव में खेल का मैदान और स्टेडियम नहीं है। धार्मिक सामाजिक कार्यक्रम के लिए कम्युनिटी सेंटर, बस स्टाप पर शेल्टर बने, गंदे नाले को पक्का किया जाए। गांव के विद्यार्थियों को पढ़ाई और नौकरी में स्पेशल कोटा दिया जाए।

ये है विरासत

जब गांव बसा था उस समय का एक पुराना कुआं है। इसमें पानी नहीं है। पेंट कर और टाइल लगाकर इसे संजोकर रखा गया है। गांव के लोग इसे पूजा के लिए और यादगार के रूप में संजोए हैं।

एक सरपंच जो बन गया मुख्यमंत्री

विलासराव महाराष्ट्र के लोकप्रिय नेताओं में से एक थे। वे दो बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत लातूर जिले के बाभालगांव के सरपंच के रूप में की थी और आज उनकी कामयाबी से सभी वाकिफ हैं। उल्लेखनीय है कि विलासराव ने ही महाराष्ट्र को विकास की नई रफ्तार दी थी। शरद पवार के बाद विलासराव ऐसे पहले नेता थे जिनके नेतृत्व में सबसे अधिक उद्योग महाराष्ट्र में लगे। उनका निधन 14 अगस्त को गुर्दे और लीवर फेल होने की वजह से चेन्नई के एक अस्पताल में हो गया था। विलासराव के परिवार में उनकी पत्नी वैशाली, तीन बेटे अमित, रितेश और धीरज हैं। अमित सभी भाइयों में सबसे बड़े हैं और वर्तमान में महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हैं।  वहीं रितेश बॉलीवुड अभिनेता हैं और उनकी पत्नी जेनेलिया डिसूजा भी बॉलीवुड अभिनेत्री हैं। 

कैसा रहा राजनीतिक जीवन 

विलासराव देशमुख ने एक सरपंच के रूप में राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। वे सर्वप्रथम महाराष्ट्र के लातूर जिले के बाभलगांव ग्राम पंचायत के सरपंच के रूप में चुने गए थे। सन 1974 से लेकर 1976 के दौरान वे सरपंच पद पर रहे। इस कामयाबी के बाद देशमुख उस्मानाबाद जिला पंचायत के सदस्य चुने गए। यहां अपना दबदबा कायम करने के बाद उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा के लिए टिकट मिली और वे भारी बहुमत से विजयी हुए।  

विधानसभा में चुने जाने के बाद वे कई विभागों के मंत्री रहे। विलासराव देशमुख सन 1999 में वे पहली बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने अपना दूसरा कार्यकाल वर्ष 2008 में पूरा किया। वर्ष 2009 से वर्ष 2011 के दौरान वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे। इसके बाद उन्होंने केंद्र में भारी उद्योग मंत्रालय तथा ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्रालयों का जिम्मा भी संभाला। इसके बाद उन्होंने विज्ञान एवं तकनीक मंत्रालय का कार्यभार भी संभाला।

Sweep the Sarpanch-झाड़ू वाली सरपंच

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा दो अक्टूबर गांधी जयंती के दिन को सफाई दिवस के रूप में मनाने के फैसले के बाद अच्छे-अच्छों के हाथों में झाडू आ गया है लेकिन यह स्थिति साल में सिर्फ एक दिन ही देखने को मिली है, लेकिन इन सबसे भी बहुत पहले से उसने अपने हाथों में झाडू थाम लिया है। कहने को तो वो सरपंच है लेकिन आज भी वह गांव की गलियों में झाड़ू लगाती है, उसका मानना है कि सरपंच पद दो बस चार दिन की है, आज है पर क्या पता कल रहे या न रहे। फिर अपना काम करने से गुरेज कैसा। इसलिए यदि हम उसे झाड़ूवाली सरपंच भी कह सकते हैं। प्रस्तुत है ‘‘झाडूवाली सरपंच’’ पर मध्यप्रदेश के भिंड से अब्दुल शरीफ की यह खास पड़ताल।

गांव के लोग दलित महिला सरपंच के जज्बे को सलाम करते हैं। सरपंच होने के बाद भी वह गांव की गलियां झाड़ू लगाकर चमाचम रखती है। लोगों ने मना किया तो बोली, ए सरपंची तो पांच साल की है इसके बाद तो झाड़ू ही लगानी है। वैसे भी हमारे काम करने से अन्य लोग भी काम करते हैं और गांव साफ रहता है।

चार साल पहले ग्राम पंचायत पांडरी की सरपंच बनीं आशादेवी ने ईमानदारी की मिसाल पेश करते हुए पंचायत निधि से दो करोड़ के विकास कार्य कराए हैं। लेकिन खुद आज भी सामान्य घर में ही रह रही हैं। आशादेवी ने कहा हम अपना पुश्तैनी काम नहीं छोड़ सकते। यही काम करके हमने अपने बच्चों को पाला पोसा और उनको पढ़ा.लिखा रहे हैं। गांव में झाड़ू लगाने व त्रयोदशी एवं वैवाहिक कार्यक्रमों में पत्तलें उठाकर इतना तो मिल जाता है कि उससे परिवार भी पलता है और बाल बच्चों की शादियां भी आसानी से निपट जाती हैं। शासन द्वारा हर माह मानदेय के रूप में मिलने वाले 1750 रूपए से वह संतुष्ट हैं। पति राजाराम उर्फ घोंचे श्वास रोग से पीडित हैं। ऐसे में छह बेटे और चार बेटियां का जिम्मा आशादेवी पर ही है। सरपंच तीन बेटियों और तीन बेटों की शादी भी कर चुकी हैं। जिनमें से एक पुत्रवधू का करीब 11 साल का बेटा भी है।  

चार साल में कराए दो करोड़ के विकास कार्य
करीब सात हजार की आबादी वाले गांव पांडरी की सरपंच आशा देवी ने अपने चार वर्ष के कार्यकाल में 10 सीसी रोड निर्माण, 07 हैंडपंप, एक पुलिया, 14 मेढ़ बंधान, एक प्राथमिक विद्यालय भवन, 35 शौचालय, 20 हितग्राहियों को शौचालय के लिए प्रोत्साहन राशि दी, 18 गृह राज्य आवास, 07 इंदिरा आवास, 60 मुख्यमंत्री आवास स्वीकृत करवाकर बनवाए हैं। कुल मिलाकर लगभग दो करोड़ रूपए की लागत के निर्माण एवं विकास कार्य करवाए जा चुके हैं जबकि कार्यकाल पूरा होने में अभी एक वर्ष बाकी है। इस एक वर्ष में भी उसे अपने गांव के लिए बहुत कुछ करवाना है।

अपने काम में काहे की शर्म
आशादेवी को गांव के लोग झाड़ू लगाते या जूठी पत्तलें उठाते हुए देखकर लोग कहते हैं कि सरपंच होकर ऐसा क्यों कर रही हो तो उनका जवाब होता है अपने काम में काहे की शर्म। सरपंची तो सिर्फ पांच साल की है।  इसके लिए हम अपना पुश्तैनी काम क्यों छोड़ें। आज जब लोग छोटा सा भी कोई पद पाने के बाद बदल जाते हैं, सरपंच बनने के चार साल बाद भी आशा देवी वही पुरानी आशा है जो कि सरपंच बनने से पहले थी, सरपंच बनने के पहले से जो काम वह करते आ रही थी, सरपंच बनने के बाद भी वह अपने उसी पुश्तैनी काम में मशगूल नजर आती है। आशादेवी के बारे में उसके सहयोगी ग्राम पंचायत पांडरी के सचिव अनिल तिवारी बताते हैं कि आशादेवी के चार वर्ष के कार्यकाल में करीब दो करोड़ के विकास एवं निर्माण कार्य हो चुके हैं। सरपंच होते हुए भी उन्होंने मजदूरी करना नहीं छोड़ा। ऐसे कर्मप्रिय सरपंच को पंचायत की मुस्कान परिवार नमन करता है।

Growth story-Chetar-जहां सभी साक्षर

राजेश पटेल

झारखण्ड का एक गांव, शिक्षा और रहन सहन के मामले में जो है शहरों से भी बेहतर। इस गांव के इतने चर्चे कि उसे देखने के लिए राजधानी रांची से लेकर लंदन तक से लोग आ चुके हैं। इस गांव में आखिर ऐसा क्या है कि इस गांव को देखने विदेशियों को भी आना पड़ा, जानिए इस खास रिपोर्ट में।

छत्तीसगढ़ के साथ-साथ जो दो अन्य राज्य अस्तित्व में आए उसमें एक उत्तराखण्ड है और दूसरा झारखंड। देश के तीन बड़े राज्यों उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार का विभाजन कर इन राज्यों का गठन किया गया था। झारखण्ड और छत्तीसगढ़ की सीमा आपस में लगी हुई है और रहन-सहन से लेकर इन दोनों प्रदेशों के गांवों में काफी कुछ समानता देखने को मिलती है। एक और बात जो दोनों प्रदेशों को समान बनाती है वह यह कि गठन के बाद से दोनों ही प्रदेश एक ही प्रकार के नक्सल चुनौतियों से दो-चार हो रहे हैं। इसी झारखंड के रामगढ़ जिला स्थित चेटर गांव के लोगों ने खुद के प्रयासों से आदर्श पेश किया है। 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ और इन 67 सालों में किसी अपराधी को पकड़ने के नाम से आज तक पुलिस नहीं पंहुची। आजादी के बाद से गांव का कोई भी मामला थाने तक नहीं पहुंचा। इस गांव की एक और विशेषता, इस गांव के सभी लोग पढ़े लिखे हैं। शत-प्रतिशत साक्षरता वाले इस गांव की आबादी करीब एक हजार है जिनमें 35 लोग शिक्षक हैं। ऐसा भी नहीं है कि इस गांव में कभी कोई विवाद नहीं होता। इस गांव में भी छोटे मोटे विवाद होते रहते हैं लेकिन गांव में किसी विवाद की स्थिति में मामला पुलिस के पास जाने के बजाए पंचायत में ही सर्वसम्मति से सुलझा लिया जाता है तथा जरूरत पड़ी तो दोषी को जुर्माना लगाकर दण्डित किया जाता है। दोषी पर लगाए गए अर्थदंड को भी गांव के किसी सार्वजनिक कार्य अथवा निर्धन की सहायता में खर्च किया जाता है। इस गांव के लोगों की सरलता, सहजता और सादगी की चर्चा प्रदेश की राजधानी से लेकर सात समुंदर पार तक जा चुकी है। ग्रामीणों की माने तो उनका रहन-सहन देखने रांची के संत जेवियर कॉलेज के छात्र से लेकर लंदन से भी लोग आ चुके हैं।

रामगढ़ जिला मुख्यालय से करीब पांच किलोमीटर दूर इस गांव की तरक्की देखते ही बनती है। गांवों की संकरी गलियों के विपरीत यहां की गलियां इतनी चैड़ी की हर गली में चार पहिया वाहन आसानी से आ-जा सकता है। यहां गंदगी और गंदे पानी को तो जैसे ढूंढते रह जाओगे। गांव में कहीं पर भी गंदा पानी नहीं दिखता और गांव की सभी नालियां अंडरग्राउंड हैं। गलियों की साफ-सफाई गांव के ही युवक टोली बनाकर करते हैं। मौका खुशी का हो या किसी के गम का, गांव का कोई भी नागरिक नशे में नहीं दिखता। कोठार पंचायत के इस गांव में महतो, मुंडा, बेदिया, करमाली, मुसलमान, ठाकुर (नाई) तथा कुम्हार जाति के लोग रहते हैं लेकिन इनकी एकता देखकर लगता है कि पूरा गांव एक ही परिवार है। 80 वर्षीय तुलाराम महतो बताते हैं कि वे लोग आजादी के आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते थे लेकिन आजादी के बाद से यहां का कोई मामला पुलिस तक नहीं पहुंचा। गांव में कोई विवाद हो भी जाता है तो उस विवाद को निपटाने के लिए सर्वसम्मति से पंच चुने जाते हैं, जिनका फैसला सभी को मान्य होता है। अर्थदंड की राशि दो लोगों के नाम से खुले खाते में रखी जाती है। जिसे किसी गरीब की बेटी की शादी में या सार्वजनिक कार्य में खर्च किया जाता है। इलाके के पुलिस अधीक्षक रंजीत कुमार प्रसाद ने कहा कि चेटर गांव के लोग तारीफ के काबिल हैं, जो आपसी विवाद को पंचायत में सुलझा लेते हैं। गांव का अपराध शून्य होना बहुत सराहनीय है।

Growth story-Ramgarh-खुले में कि शौच तो खैर नहीं

रामगढ़। अब चाहे कितनी भी इमरजेंसी हो लेकिन शौच के लिए आपको अपने घर में बने शौचालयों में बैठना पड़ेगा, इस गांव में अगर आप खुले में शौच किए तो आपकी खैर नही। ऐसा करने पर आपको जुर्माना देना पड़ेगा, झारखंड के रामगढ़ जिले की मुर्राम कलां पंचायत की महिलाएं निर्मल भारत अभियान को सफल बनाने के लिए आगे बढ़ी हैं। शुक्रवार 22 अगस्त को स्थानीय पटेल छात्रावास में निर्मल भारत के तहत आयोजित सभा में सैकड़ों महिलाओं ने खुले में शौच न करने की शपथ ली। सभा में सभी को शपथ दिलाई गई कि वे अपने घरों में व्यक्तिगत रूप से शौचालय का निर्माण कराएंगे। अगर कोई खुले में शौच करेगा तो उसे 101 रुपये जुर्माना देना पड़ेगा। पंचायत की युवतियों ने शपथ ली कि जिन घरों में शौचालय नहीं होगा, वहां शादी नहीं करेंगी। इसके अलावा भूमिगत जल संरक्षण को लेकर भी पंचायत में निर्णय लिया गया। इसके तहत हर मकान में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का फैसला किया और प्रस्ताव भी पारित कर दिया। ग्रामीणों ने स्वच्छ पानी पीने का भी संकल्प लिया। कहा, अगर घर में कुआं हो और पास में हैंडपंप तो हैंडपंप के पानी का ही इस्तेमाल करेंगे। मौके पर मौजूद बीडीओ पवन कुमार महतो, पंचायत प्रमुख माधवी देवी, मुर्राम कलां पंचायत की मुखिया अर्चना महतो ने सभी महिलाओं को शपथ दिलाई।

Growth story-Hibdebajar-युवा सरपंच ने बदली गांव की तसवीर

अंजनी कुमार सिंह
कुशल प्रशासन और चुस्त प्रबंधन की वजह से महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के हिबड़े बाजार गांव की आज पूरे देश में चर्चा है. कैसे एक युवा सरपंच के नेतृत्व में एकजुट हिबड़े बाजार के लोगों ने गरीबी से न केवल मुक्ति पा ली, बल्कि आज पूरा गांव आत्मनिर्भर है. 

गरीबी से घिरा हुआ गांव, जहां शराब की दुकानें हो, नशाखोरी और अपराध हो, वहां भी आर्थिक संपन्नता और तरक्की आ सकती है? यह नामुमकिन-सा लगता है, लेकिन ई-गवर्नेस ने यह सब काम कर दिखाया है. इसका उदाहरण महाराष्ट्र के एक जिले अहमदनगर का हिबड़े बाजार है. 1972 में जिस हिबड़े बाजार के लोग भुखमरी के शिकार थे आज उसी हिबड़े बाजार के लोग काफी खुशहाल हैं. 1995 में यहां पर प्रति व्यक्ति आय काफी कम थी यानी 830 रुपये महीना. लेकिन आज यह बढ़कर 30 हजार रुपये प्रति माह हो गयी है. 235 परिवार वाले इस गांव की जनसंख्या एक हजार के आस-पास है. इस गांव में आज 60 लखपति हैं. पहले जहां यह गांव एक जंगल था, वहीं आज इस गांव में चारों तरफ हरियाली बिखरी पड़ी है.

गांव के लोगों का कहना है कि 1972 के सूखे के कारण वे लोग टूट से गये थे. छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई होती थी. खाने की समस्या थी. मजदूरी के लिए जो लोग बाहर जा सके, चले गये, बाकी लोगों का काम गांव में ही शराब पीना और जुआ खेलने तक सीमित रह गया. आर्थिक हालात ऐसे बन गये कि पूरा सामाजिक ताना-बाना टूटने के कगार पर पहुंच गया. गांववालों में निराशा घर कर गयी  थी. हालांकि, देश में आर्थिक सुधार चल रहा था, लेकिन यह गांव उससे अछूता. तभी गांव के कुछ स्थानीय युवाओं ने विचार-विमर्श कर तय किया कि हमें एक नौजवान सरपंच बनाना है. तब जो सरपंच थे उम्रदराज थे और गांव की भलाई के लिए कुछ करने में रुचि नहीं रखते थे. युवकों ने 1989 में उसी गांव के पोपट राव पंवार को नया सरपंच चुना. वह पोस्ट ग्रेजुएट थे. लेकिन पोपट राव इसके लिए तैयार नहीं था, क्योंकि उसका परिवार भी तब साथ देने को तैयार नहीं था. उनका परिवार चाहता था कि पोपट शहर जाकर काम करें या फिर रणजी ट्रॉफी खेले. मालूम हो कि पोपट अच्छे क्रिकेटर भी रहे हैं. लेकिन लोगों का आग्रह वह ठुकरा न सके और चुनाव में निर्विरोध जीते. यहीं से पोपट या उस गांव की किस्मत खुली. दरअसल, पोपट ने महसूस किया कि यह ऐसा मौका है, जहां से अपने और दूसरों के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है. उन्होंने गांव वालों के विकास के लिए बातचीत शुरू की. पूरा गांव उस समय नशे और शराब में डूबा था. गांव में तकरीबन 20 शराब की दुकानें थीं. गांववालों को इस बात के लिए राजी करने में वे कामयाब हुए कि गांव में सबसे पहले शराब की दुकानें बंद करायी जायें. उसके बाद उन्होंने बैंक ऑफ महाराष्ट्र से गरीब परिवारों को लोन दिलवाने में मदद की. चूंकि इन परिवारों ने शराब बेचना छोड़ दिया था, इसलिए इनके पास कमायी का कोई और जरिया नहीं रह गया था.

हरियाली में बदली बंजर भूमि

साथ ही पोपट ने गांव की बंजर पड़ी जमीन को हरा-भरा करने की ठानी. गांव में पानी के अभाव के चलते जमीन बंजर हो गयी थी. इस समस्या को दूर करने के लिए उन्होंने पानी के संरक्षण और मैनेजमेंट पर ध्यान दिया, ताकि खेती हो सके. उन्होंने रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रोग्राम की शुरुआत की. गांव में उन्होंने 50 से 52 के करीब तालाब बनवाये. टैंक और चेक डैम तैयार किये. इसके लिए उन्होंने सरकारी मदद के साथ गांव के लोगों से भी स्वैच्छिक मदद ली. हिबड़े बाजार रेन शैडो में था, क्योंकि वहां बारिश नहीं होती थी. इसलिए गांव के लोगों का मकसद था बूंद-बूंद पानी बचाना. तब वहां की सारी भूमि बंजर थी.

सिंचाई के साधनों का विकास

इन सभी पहल के बाद उन्होंने पहली बार मॉनसून में 70 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई की. 2010 में भी इस गांव में बेहद कम बारिश हुई थी, मात्र 190 एमएम. फिर भी यहां के लोगों ने पानी को मैनेज कर स्टोर किया और अच्छी तरह से कई फसलें उगायीं. 1995 तक इस गांव में करीब 90 कुएं थे, जिनकी संख्या अब 300 तक जा पहुंची है. ये कुएं 15 से 40 फीट तक गहरे हैं. गांव में 200 फीट नीचे तक पानी लाने के लिए जाना पड़ता है. 1995 में कुल खेती की जमीन का करीब 10वां हिस्सा ही सिंचाई योग्य था. 976 हेक्टेयर में से 150 हेक्टेयर जमीन पथरीली थी. गांव वालों ने मिल कर जमीन से पत्थर हटाया. जमीन की जुताई की और सिंचाई कर अच्छी फसल पैदा की. नतीजा 1995 में गांव की प्रति व्यक्ति आमदनी 830 रुपये से बढ़ कर 2012 में 30,000 रुपये तक पहुंच गयी. बीपीएल परिवार 1995 में जहां 168 थे, वे घट कर मात्र तीन रह गये.  1995 में जहां दूध का उत्पादन पूरे गांव में 200 लीटर होता था, वहीं आज 4,000 लीटर से ज्यादा हो रहा है. कहना गलत नहीं होगा कि गरीबी, भूखमरी और अपराध से ग्रसित इस गांव में अच्छे गवर्नेंस और लीडरशिप की वजह से विकास हुआ.

श्रम दान की संस्कृति विकसित

पोपट राव ने हिबड़े बाजार में श्रमदान की संस्कृति विकसित की. पशुओं के चारे और पेडों की कटाई बंद करने से जगह-जगह हरियाली आयी. उन्होंने समुचित रूप से योजनाबद्ध तरीके से न्यूनतम संसाधनों से अधिकतम मुनाफा हासिल किया. हिबड़े बाजार में 2004 से पानी का सालाना ऑडिट होता है, ताकि ग्राउंड वाटर की उपलब्धता का पता चल सके. इस गांव के जो 32 परिवार अन्यत्र चले गये थे, वे वापस गांव आ गये हैं. गांव में महिला समृद्धि समूह, मिल्क डेयरी सोसाइटी, यूथ क्लब, कोऑपरेटिव बाजार खुल गये हैं. गांव के माल को अब हिबड़े बाजार ब्रांड से बेचा जाता है. यह सेल्फ सस्टेन मॉडल है, जिसके आधार पर हर इनसान काम कर सकता है. इस गांव के लोग दूसरे गांव वालों के मुकाबले दोगुना ज्यादा कमा रहे हैं.

हिबड़े बना आदर्श

ृपोपट राव के विकास मॉडल को देखते हुए उन्हें महाराष्ट्र मॉडल विलेज प्रोग्राम का चेयरमैन भी बनाया गया. 100 गांव को हिबड़े बाजार की तरह बनाने का लक्ष्य है. इस बारे में पोपट राव कहते हैं, ‘सफल होने का एक कारण यह है कि इन कामों में गांव के लोगों की पूरी भागीदारी रही है. लोगों को लगा कि जो काम किया जा रहा है, उसकी उन्हें जरूरत है और यह किया जाना चाहिए. अन्यथा इतना काम होना मुश्किल होता.’ उन्हें इस गांव को तरक्की की राह पर लाने में तकरीबन 21 साल लगे, लेकिन अब यदि इसी तरह का कोई दूसरा गांव हो तो उसे डेवलप करने में मात्र दो साल लगेंगे, क्योंकि उन्होंने इस काम की पूरी स्ट्रेटजी को समझ लिया है.

saatkarsthal-Determines where the fly Sarpanch-जहां मक्खी तय करती है सरपंच

हिंदी फिल्मों के अभिनेता नाना पाटेकर का लोकप्रिय संवाद है- ‘‘एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है।’’ महाराष्ट्र के पुणे जिले के घटनाक्रम को देखने के बाद इसे बदलकर यह भी कहा जा सकेगा कि ‘‘एक मक्खी आपको नेता बना सकती है।’’ जी हां, खेड तहसील के सातकरस्थल गांव ने वास्तव में अपना सरपंच चुनने का अधिकार गांव की मक्खी के हवाले कर रखा है। साढ़े पांच हजार लोगों की जनसंख्या वाले गांव ने लोकतांत्रिक दायित्वों के पालन का यह अनोखा तौर-तरीका अपनाया है। जून माह के अंतिम शनिवार को एक मक्खी ने तय किया कि गांव की एक सामान्य महिला संजीवनी थिगले को अगली उपसरपंच होंगी।

राजगुरुनगर से तीन किलोमीटर दूरी पर बसे सातकरस्थल के उपसरपंच ने पद से इस्तीफा दे दिया था। उपसरपंच पद रोटेशन प्रणाली से घूमता है और सभी इच्छुकों के नाम की पर्ची बनाई जाती है। इनमें से एक पर्ची निकालकर उपसरपंच चुनने की परंपरा सी बन गई है। गांव के भैरवनाथ मंदिर में इक्ट्ठा हुए गांववालों ने पर्ची चुनने की जिम्मेदारी मंदिर की मक्खी पर सौंप दी। तय हुआ कि जिस पर्ची पर सबसे पहले मक्खी बैठेगी, उसी को उपसरपंच बना दिया जाएगा। मक्खी सबसे पहले जिस पर्ची पर बैठी उसमें एक महिला संजीवनी का नाम निकला। सर्वसम्मति से संजीवनी को गांव का उपसरपंच घोषित कर दिया गया।
चुनाव के बाद नवनियुक्त उपसरपंच संजीवनी ने मक्खी की मदद से हुए चयन का समर्थन किया। उन्होंने बताया कि पिछले दो सालों से गांव वाले सरपंच और उपसरपंच के चुनाव में अनोखे तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। गांव के बड़े-बूढ़ों ने बताया कि सरपंच के चुनाव में हिंसा, अपहरण और पैसों के लेनदेन से तंग आकर लोगों ने विवाद टालने के लिए यह नया तरीका इजाद किया है। पुणे के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस तरीके को ‘‘अंधश्रद्धा’’ ठहराते हुए इस पर विरोध दर्ज किया है।

Growth story-राजसमढियाला जहां मकानों में ढूंढ़े से नहीं मिलता ताला


राजकोट। गुजरात के इस गांव में ढूंढें से भी किसी के घर ताला नहीं मिलेगा, क्योंकि यहां कोई भी अपने घर में ताला नहीं लगाता। घर तो घर, दोपहर में दुकानदार अपनी दुकान खुली की खुली छोड़कर घर खाना खाने भी आ जाते हैं। ग्राहक दुकान पर आए तो अपनी जरूरत की वस्तु लेकर उसकी कीमत के रुपए दुकान के गल्ले में डालकर चला जाता है। सिर्फ एक घटना को छोड़ दें तो यहां आज तक कभी भी चोरी की घटना नहीं हुई। इस गांव में हुई चोरी की एकमात्र घटना भी कुछ ऐसी रही थी कि दूसरे ही दिन खुद चोर ही ने पंचायत में अपना अपराध कुबूल कर लिया था और इसका प्रायश्चित करने के लिए उसने मुआवजा भी दिया था। यहां गुटखा विरोधी अभियान चलाने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि यहां पहले से गुटखे पर प्रतिबंध था और इस नियम को कोई तोड़ता भी नहीं। ग्राम पंचायतों की दुकानों पर केरोसिन भी उचित कीमत पर ही मिलता है। 

गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित है इस गांव का नाम है राजसमढियाला, जो राजकोट शहर से मात्र 22 किमी की दूरी पर स्थित है। गांव की इस श्रेष्ठता का पूरा श्रेय जाता है यहां रहने वाले हरदेव सिंह जाडेजा को। एम.ए की पढ़ाई करने के बाद एसआरपी में जुड़े, लेकिन उनका मन नौकरी में नहीं लगा और उन्होंने नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद गांव की राह पकड़ ली। गांव की राह भी उन्होंने कुछ इस अंदाज में पकड़ी कि पूरे गांव का नक्शा ही बदल डाला और सौराष्ट्र ही नहीं, पूरे गुजरात में गांव का नाम प्रसिद्ध कर दिया। एक अखबार के पत्रकार ने तो अपने एक लेख में लिखा भी था कि अगर देश इस गांव के नक्शे कदमों पर चलने चले तो पूरे देश का उद्धार निश्चित है। जाडेजा 1978 में इस गांव के सरपंच बने और इसके बाद से ही गांव की जीवन प्रक्रिया पूरी तरह से बदलने लगी। सरपंच बनने के बाद उन्होंने हर कहीं कचरा फेंककर गंदगी फैलाने, जुआ खेलने वालों, शराब पीने जैसी असामाजिक प्रवृत्तियों के खिलाफ नियम बनाया। इस नियम के तहत आरोपी को 30 हजार रुपए का दंड देना होता था। इसके बाद उन्होंने प्रति व्यक्ति के लिए एक वृक्ष लगाने का नियम बनाया। इसी का नतीजा है कि गांव में आप हर जगह हरे-भरे वृक्ष देख सकते हैं। ग्रामीणों के घर उद्यान की तरह बन चुके हैं। इतना ही नहीं इस गांव में ग्राम पंचायत से लेकर हरिजन कॉलोनी तक का नजारा किसी रिसोर्ट से कम नहीं दिखाई देता। जाडेजा ने गांव में पानी की व्यवस्था भी इतने अच्छे तरीके से की आज जहां, पूरे सौराष्ट्र में पानी की किल्लत है वहीं, इस गांव में पानी की कोई कमी नहीं। इसके लिए जाडेजा ने बरसात के पानी को रोकने की व्यवस्था की, जिसके लिए तालाब बनवाया। इसके अलावा उन्होंने वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम पर भी काम किया, जिससे गांव की जमीन में जल का स्तर कभी नीचे ही नहीं जाता। सरपंच के कारण पूरा गांव स्वच्छ, सुरक्षित और समृद्ध बन सका है। जाडेजा यहीं नहीं रुके। गांव के विकास के बाद उन्हें गांव में एक स्टेडियम बनाने का भी विचार आया। उनके इस विचार को ग्रामीणों ने तुरंत स्वीकार किया और स्टेडियम हेतु पर्याप्त जमीन के लिए लिए अपनी-अपनी जमीनें भी दे दी। गांव में बने इस स्टेडियम में क्रिकेट की पांच टर्फ विकेट भी बनाई गई हैं। पर्याप्त पानी की व्यवस्था के चलते गांव में फसल लहलहाने लगी। इस गांव की आबादी 2 हजार से भी कम है, लेकिन प्रतिवर्ष कम से कम 35 हजार मन गेहूं और 7 हजार मन कपास के साथ अन्य दूसरी फसलें भी यह गांव पूरे वर्ष उगाता है। इतना ही नहीं, ग्रामीण प्रतिवर्ष 5 लाख रुपए की तो सब्जी ही बेच लेते हैं। गांव में कई चेक डेम हैं, जिसमें बरसात का पानी भरा रहता है। सिर्फ गांव की सीमा पर ही 51 हजार से अधिक वृक्ष हैं। इस बारे में जाडेजा कहते हैं कि स्टेडियम बनाने से पहले हरेक प्रकार की प्राथमिक सुविधाओं पर भी ध्यान दिया। अब पूरे गांव में सीमेंट की सड़कें बन चुकी हैं। अब गांव को प्लास्टिक मुक्त गांव बनाने का अभियान चल रहा है। इसके लिए नियम बनाया गया है कि अगर कोई प्लास्टिक की थैलियों का कचरा इधर-उधर फेंकता है तो उसे 51 रुपए का दंड देना होगा। इसके तहत अब तक कई ऐसे घरों से 31 रुपए का हर्जाना लिया जा चुका है, जिनके घर के बाहर प्लास्टिक का कचरा पड़ा हुआ दिखाई दिया। इन सभी नियमों और ग्रामीणों की प्रतिबद्धता का कमाल है कि अब आसपास के गांव भी इस गांव का अनुसरण करने लगे हैं। राजसमढियादा की समृद्धि को देखते हुए आसपास के खोलडदल, अणियारा, लीली साजडियाणी, भूपगण, लाखापर, तंब्रा जैसे गांवों में तो अब तक 130 चेकडेम भी बन चुके हैं। 

Growth story-Raniyali-यहां चलती है महिलाओं की हुकुमत

हरियाणा के मेवात के रनियाली गांव की महिला पंचायत ने यहां महिला सशक्तीकरण की एक मिसाल कायम की है। यह पंचायत हिदुस्तान की दूसरी महिला पंचायत है। जहां पंच से लेकर सरपंच महिला हैं। हिंदुस्तान की पहली महिला पंचायत होने का रिकॉर्ड भी मेवात जिले के नीमखेडा गांव ने बनाया था। सामाजिक एकरूपता की नई इबादत लिखने वाली पंचायत के पदाधिकारियों को एक ही मकसद है कि गांव में शिक्षा की ऐसी बयार चलाएं कि कोई निरक्षर न रह पाए।

गांव के प्राइमरी स्कूल में लडकों से ज्यादा लड़कियों की संख्या है, लेकिन मलाल इस बात का है कि सरकार ने पंचायत की मांग पर भी गांव के स्कूल को अपग्रेड नहीं किया। ऐसे में सुविधा व संसाधनों के अभाव में लड़कियां पढ़ाई छोड़ रही है। बातचीत में ग्रेजुएट सरपंच असमीना बेगम का कहना है कि सरपंच बनने से पहले राजनीति में आने का उनका कोई खास मकसद नहीं था, लेकिन सरपंच बनने के बाद उन्हें आभास और अहसास हुआ कि महिलाएं किसी क्षेत्र में पीछे नहीं है, बशर्ते जरूरत है पहल की। उन्होंने बताया साढ़े तीन हजार की आबादी वाली ग्राम पंचायत में सरपंच व पाच पंच है। ग्रामीणों ने पंचायत का चुनाव निर्विरोध किया। उन्होने कहा आज मेवात में महिलाओं की जो दशा है वह दयनीय है। इसलिए पंचायत की प्राथमिकता है कि शिक्षा पर विशेष बल दिया जाए। कई-कई किलोमीटर दूर तक मिडिल व हाईस्कूल न होने के कारण लड़कियां पाचवीं के बाद पढ़ नहीं पा रही है, जिसका उन्हे खासा मलाल है। इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने उपायुक्त व जनप्रतिनिधियों से गांव के स्कूल का दर्जा बढ़ाने की अपील की थी, लेकिन अभी तक कामायाबी नहीं मिली है। उन्होने कहा उनकी लड़कियों को पाचवीं के बाद शिक्षा प्राप्त करने के लिए लगभग आठ-दस किलोमीटर दूर अगोन, 12 किलोमीटर दूर साकरस व 15 किलोमीटर दूर फिरोजपुर झिरका जाना पड़ता है।

Growth story-यहां नही है सरपंच

हरियाणा में हिसार के सेक्टर 13 में पब्लिक हेल्थ की जमीन पर हुक्का पंचायत बैठती है। कभी ये एक मुद्दे को सुलझाने के लिए बैठते हैं तो कभी बस गप्पे ही हांकते हैं। सुबह चार बजे पंचायत सजती है और रात 12 बजे तक चलती है। पिछले एक साल से सेक्टर की यह हुक्का पंचायत सैकड़ों विवादों निपटा चुकी है। चार पांच लोगों की यह सोच अब एक मुहिम में बदल चुकी है। पंचायत में सदस्यता का सीधा नियम है, जो पंचायत में लगभग रोज आए वहीं इसका सदस्य। बुजुर्गो के लिए तो यह पंचायत से कम नहीं। बच्चे जब काम पर निकल जाते हैं तो यहीं उनका दिन कट जाता है। होली, दीवाली भी यहीं मनती है। जिसके घर में जो व्यंजन बने यहीं लाकर त्यौहार मनाते हैं हुक्का पंचायत के सदस्य। 10 साल में ऐसा एक भी दिन नहीं आया जिस दिन हुक्का पंचायत ना बैठी हो। पंचायत में आने वाले लोग एक दूसरे के बेहद करीब हैं। दो दिन अगर कोई सदस्य ना पहुंचे तो तीसरे दिन उसकी पूछताछ शुरू हो जाती है। हंसकर सदस्य कहते हैं कि गांव जाने के लिए भी पंचायत की मंजूरी चाहिए। 

हुक्का पंचायत बनीं परिवार

हुक्का पंचायत सुबह से लेकर देर रात तक चलती है। पंचायत के सदस्य हंसकर कहते हैं कि हमारी खबर तो चोरों को भी रहती है। कई बार हमने चोरी की कोशिश करने वालों को पकड़कर पुलिस के हवाले किया है। बुजुर्ग महताब सिंह और हरीचंद बताते हैं कि बच्चे अब काम धंधे वाले हो चुके हैं। सब अपनी दुनिया में मस्त हैं। कई बार सोचते हैं कि हुक्का पंचायत नहीं होती तो हमार बुढ़ापा कैसे कटता। पंचायत के सदस्य आपस में एक दूसरे का ध्यान भी रखते हैं। पब्लिक हेल्थ की खाली जमीन पर अमरूद के कई पेड़ हैं। हुृक्का पंचायत ने इन्हें लगाया। ये अब फल देने लगे हैं तो इनके फल पहले बुजुर्गों को मिलते हैं और बाद में युवाओं को। पंचायत में 20 साल के युवाओं से लेकर 90 साल तक के बुजुर्ग भी आते हैं। बुजुर्ग सुमेर सिंह कहते हैं कि-भाई जवानां म्ह बैठके तो हाम्म भी जवानां बरगे होरे सां। सेक्टर की हुक्का पंचायत आसपास झुग्गी वालों की भी मदद करती है। नल भी लगवाया्र है ताकि गायों को पानी पिला सकें। आने जाने वालों को भी मटकों का ठंडा पानी मिलता है। अमर लाल बूरा कहते हैं कि-यह शहर की पंचायत है। यहां कोई सरपंच नहीं और हर आदमी पंच है। भाईचारा ही पंचायत का मकसद है। सेक्टर में किसी के भी घर शादी हो। एक कार्ड हुक्का पंचायत का भी जरूर आता है।

Glamour women of the Growing Media-युवतियों में बढ़ता मीडिया का ग्लैमर

नारद मुनि से प्रारंभ हुआ पत्रकारिता का ग्लैमर आज कितना बढ़ चुका है इसकी बानगी हमें रोजगार मेले कक्ष क्रं0 18 में देखने को मिल रही थी जहां कि बहुरंगी हिन्दी मासिक पत्रिका पंचायत की मुस्कान के द्वारा विज्ञापन सहायक के पद पर भर्ती की जानी थी। रोजगार मेला प्रारंभ होने से पहले इस मेले के आयोजक जिला रोजगार अधिकारी सहित हम सभी की सोच यही थी कि मेले के दूसरे कक्षों में तो बेतहाशा भीड़ होगी वहीं हमारे पास इक्का-दूक्का लोग ही पंहुचेंगे, शायद इसी सोच के चलते रोजगार अधिकारी श्री पटेल के द्वारा हमें कक्ष क्रमांक 17 जहां सुरक्षा गार्ड के 150 पदों की भर्ती की जानी थी के पास में पंचायत की मुस्कान को कमरा दिया गया था लेकिन रोजगार मेला प्रारंभ होने के साथ ही पूरे रोजगार मेले का माहौल कुछ और था। मीडिया का ग्लैमर लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा था और मेले में हर ओर पंचायत की मुस्कान के ही चर्चे थे। रोजगार मेले में पंचायत की मुस्कान के ग्लैमर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोजगार मेले में पंहुचे दूसरे नियोजकों के द्वारा जहां सुबह 10 बजे के बाद से आवेदन पत्र लेने प्रारंभ किए गए वहीं पंचायत की मुस्कान के कक्ष में पहला आवेदन पत्र सुबह 9 बजे ही प्राप्त हो गया था। बाकि नियोजक जहां 4 बजे तक अपना काम समेट चुके थे वहीं पंचायत की मुस्कान के संपादक राजेश सिंह क्षत्री, छत्तीसगढ़ ब्यूरो संतोष कश्यप, जांजगीर चांपा ब्यूरो पंकज यादव, नवागढ़ के हमारे संवाददाता मनीष कर्ष, कोरबा के हमारे सहयोगी रामनाथ चैहान, अविनाश सिंह राठौर के साथ स्वयं मैं और मेरे अन्य सहयोगी साथियों के अथक प्रयास के बाद भी शाम 6 बजे तक पंचायत की मुस्कान में इंटरव्यू का सिलसिला चलता रहा और लोगों की भीड़ जमा रही। शाम को जब हमने विज्ञापन सहायक के लिए हमें प्राप्त आवेदन पत्रों की गिनती की तो वह तीन सौ का आंकड़ा पार कर ट्रिपल थ्री तक पंहुच चुका था। पंचायत की मुस्कान में जमा आवेदन पत्रों में युवकों के साथ बड़े पैमाने पर युवतियों के भी आवेदन पत्र शामिल थे।

यूं तो वर्तमान समाज में युवक और युवतियों को समान अधिकार प्रदान किया गया है लेकिन मीडिया के क्षेत्र में अभी भी इनकी भूमिका सीमित ही है। मीडिया में जो भी युवतियां अपना करतब दिखा रही है अधिकांशतः वो बड़े शहरों में ही रहने वाली है ऐसे में पंचायत की मुस्कान में विज्ञापन सहायक के पद के लिए मीडिया की बढ़ती भागीदारी हमें एक नया हौसला प्रदान करने वाला रहा। पंचायत की मुस्कान में पहले से ही श्रीमती यशवंत रानी प्रसार एवं संपादन के क्षेत्र में परदे के पीछे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते आ रही है वहीं बम्हनीडीह क्षेत्र में पंचायत की मुस्कान का उत्तरदायित्व श्रीमती संतोषी यादव ने संभाल रखी है। पंचायत की मुस्कान के कोरबा ब्यूरो प्रमुख अविनाश सिंह राठौर की टीम में भी श्रीमती उर्मिला चंद्रा प्रसार एवं विज्ञापन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते आ रही है। वहीं रोजगार मेले में पंचायत की मुस्कान के कक्ष में सबसे पहले 47 नंबर पर जांजगीर की सुनीता चतुर्वेदी ने अपने आवेदन जमा किए जिसके बाद अंत तक युवतियां सक्रिय रही। बम्हनीडीह ब्लाक के अंतर्गत आने वाले एक छोटे से ग्राम पोड़ीशंकर से ही ममता साहू, बिंदिया साहू, सरस्वती, पूर्णिमा साहू जैसे आधा दर्जन से ज्यादा लोग मीडिया के क्षेत्र में अपने कैरियर की शुरूवात करने के लिए पंहुचे थे। सुनीता के बाद लखुर्री की रूख्मणी आदित्य, बरगंवा की सपना कटकवार, दीपा धीवर, कुसुम आदित्य जांजगीर की शांति दुबे ने अपने आवेदन जमा किए। पहले सौ आवेदन पत्रों में जहां सिर्फ 6 युवतियों के आवेदन पत्र हमें प्राप्त हुए तो वहीं दूसरे सौ में डेढ़ दर्जन युवतियों ने अपने आवेदन पत्र जमा किए वहीं अंतिम 33 आवेदनों में से 25 प्रतिशत से भी ज्यादा 9 युवतियों ने आवेदन पत्र जमा किए। पंचायत की मुस्कान में विज्ञापन सहायक के पद पर लगभग चार दर्जन युवतियों के द्वारा आवेदन पत्र जमा करना देश में बढ़ती बेरोजगारी के साथ-साथ युवतियों में हावी होते मीडिया के ग्लैमर का परिचायक है। इतने व्यापक पैमाने पर युवतियों के आवेदन मिलने पर एकबारगी तो ऐसा लगा मानों युवतियां विज्ञापन सहायक के पद पर करने वाले कार्य को नहीं समझ पा रही होगी लेकिन उनसे साक्षात्कार लेने पर वह आशंका भी जाती रही। साक्षात्कार के समय कुछेक को छोड़कर सभी ने कहा कि उन्हें पता है (या पता चल चुका है) कि इस पद पर फिल्ड में कार्य करके विज्ञापन एकत्रित करनी है वहीं फिल्ड के कार्य के लिए भी वो उत्साहित दिखी। किसी ने कहा कि इस जाब पर आने के बाद वो फिल्ड करने के लिए नई स्कूटी खरीद लेंगी तो किसी ने कहा कि उनके पास पहले से ही टू व्हीलर है जिसे वो चला लेती है। कईयों ने इस पद पर कार्य करने के लिए अपने आप को सर्वाधिक उपयुक्त बताते हुए अपने फिल्ड के कार्य के अनुभव बांटे तो किसी-किसी ने अपने स्कूल और कालेज लाईफ का हवाला दिया कि वो किस प्रकार से अपने साथियों के बीच में बिंदास रहती हैं। युवतियों के प्राप्त आवेदन पत्र भी हमें जांजगीर, चांपा शहरों के साथ-साथ कोटमीसोनार, बरगंवा, तागा, तिलई, बिर्रा, कटनई जैसे जिले के सभी क्षेत्रों और सभी वर्गो से प्राप्त हुए। इन युवतियों के जज्बे को देखते हुए पंचायत की मुस्कान ने भी एकाधिक लोगों को अपने परिवार का हिस्सा बनने का मौका दिया है वहीं ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि अपने कार्य में वो कहां तक सफल होते हैं क्योंकि आवेदन पत्र जमा करने और चयन होने के बाद भी युवतियों के समक्ष परिवार और समाज का लम्बा ताना-बाना रहता है जो कि आज भी नहीं चाहते कि युवतियां फिल्ड में निकले और युवाओं के साथ-साथ कदम से कदम मिलाकर चले। हां, इतना जरूर है कि इन युवतियों को अगर अपने परिवार और समाज का साथ मिले तो आने वाले समय में हमें अपने जिले में भी मीडिया के क्षेत्र में लोकप्रिय नामों में कुछ युवतियों के नाम सुनने को मिल सकते हैं। 

Positive thinking people are welcome-सकारात्मक सोच वालों का स्वागत है: राजेश

रोजगार मेला को संबोधित करते संपादक राजेश सिंह क्षत्री
25 जून 2012 को डाईट जांजगीर में आयोजित रोजगार मेले में पंचायत की मुस्कान के द्वारा भी सहभागिता निभाई गई। आपकी अपनी बहुरंगी हिन्दी मासिक पत्रिका पंचायत की मुस्कान में इस मेले के माध्यम से विज्ञापन सहायक के 9 पदों पर नियुक्ति की जानी थी। रोजगार मेले में सबसे पहले मेले में आए बेरोजगारों को नियोजकों के द्वारा संबोधित किया जाना था। इसी कड़ी में पंचायत की मुस्कान के संपादक राजेश सिंह क्षत्री ने भी मेले में आए बेरोजगारांे को संबोधित किया। यह राजेश सिंह क्षत्री के सारगर्भित उद्बोधन और पंचायत की मुस्कान के जांजगीर चांपा जिले में लोकप्रियता का ही असर रहा कि लोग पंचायत की मुस्कान के साथ जुड़ने और विज्ञापन सहायक के पद पर महज 6000 रूपए में कार्य करने के लिए टूट पड़े। पंचायत की मुस्कान के पास एक ही दिन में इतने लोगों के आवेदन पत्र आ गए जितने बड़े-बड़े मीडिया समूहों के पास पूरे प्रदेश में की जा रही भर्ती के समय भी नहीं आ पाते। 25 जून को पंचायत की मुस्कान के पास कुल 333 लोगों ने अपने आवेदन पत्र जमा कर साक्षात्कार दिलाए वहीं पंचायत की मुस्कान ने भी उन्हें निराश नहीं किया और 9 की जगह 12 लोगों की नियुक्ति विज्ञापन सहायक के पद पर की। पंचायत की मुस्कान के संपादक राजेश सिंह क्षत्री के संबोधन के प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत है-

साथियों, जैसा कि आप सभी जानते हैं कि भारतीय संविधान में लोकतंत्र के तीन स्तंभ व्यवस्थापिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका का वर्णन है। वर्तमान समाज में मीडिया को लोकतंत्र का चैथा स्तंभ माना गया है। पंचायत की मुस्कान लोकतंत्र का वही चैथा स्तंभ है। पंचायत की मुस्कान को जांजगीर चांपा जिले से प्रकाशित पहली पूर्णतः रंगीन मासिक पत्रिका होने का गौरव प्राप्त है। मार्च 2011 में पंचायत की मुस्कान के प्रथम अंक के प्रकाशन के बाद से अब तक यह पत्रिका लगातार नियमित रूप से प्रकाशित होते आ रही है। अत्यंत अल्प समय में ही पंचायत की मुस्कान की अपनी एक अलग पहचान है। जिले के सेमरा, बिर्रा जैसे छोटे-छोटे गांवों में पंचायत की मुस्कान की सौ से ज्यादा प्रतियां जाती है जो हमारे लिए गौरव की बात है। आज पंचायत की मुस्कान जांजगीर चांपा जिले के सभी विकासखण्डों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर, महासमुंद, दुर्ग, कोरबा, रायगढ़, कांकेर, जशपुर, बलौदाबाजार, बलरामपुर आदि जिलों सहित अन्य राज्य मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश एवं बिहार तक पंहुच रही है। वहीं इंटरनेट पर पंचायत की मुस्कान सर्च कर विश्व के किसी भी कोने से इसे पढ़ा जा सकता है। आज समाज में मीडिया की भूमिका से हम सभी अवगत हैं। मीडिया में कार्यरत लोगों को समाज में प्रतिष्ठा की नजरों से देखा जाता है वहीं मीडिया के लोगों को अपने कार्य के सिलसिले में एक संत्री से लेकर एक मंत्री तक सभी से मिलना होता है। मतलब साफ है, पंचायत की मुस्कान परिवार के साथ जुड़कर आपको मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा तो प्राप्त होगी ही, यह आपके व्यक्तित्व के विकास में भी सहायक सिद्ध होगा। पंचायत की मुस्कान के लिए अपने सहयोगी के रूप में हमें सभी विकासखण्डों में विज्ञापन सहायक की आवश्यकता है जिसके लिए प्रारंभिक वेतनमान 6000 रूपए मासिक है।

किसी ने ठीक ही कहा है, हर सुबह सो कर उठने के बाद आपके पास दो विकल्प होते हैं। पहला मीठे-मीठे सपने देखने के लिए चादर ओढ़कर फिर से सो जाओ और दूसरा, आलस्य त्यागकर उठो और अपने सपने को पूरा करने के लिए जी जान से जुट जाओ। अगर आप पहली तरह के व्यक्ति हो तो इतना जान लो कि जो व्यक्ति दिन की शुरूवात में अपनी नींद से ही पराजित हो गया उसके आगे बढ़ने के अवसर सीमित हैं वहीं अगर आप दूसरे प्रकार के व्यक्ति हो तो आप किसी भी संस्था में रहो, आपके आगे बढ़ने के अवसर उतने ही ज्यादा है। जिंदगी के प्रति जिनकी सोच नकारात्मक है उनके लिए हम यही कहेंगे कि वो हमसे दूर ही रहे तो ज्यादा अच्छा है वहीं जो सकारात्मक सोच वाले हैं और जिनमें कुछ करने का जुनून है ऐसे लोगों का पंचायत की मुस्कान परिवार में तहे दिल से स्वागत है। आईये, आगे बढि़ए, मीडिया सेक्टर में आपका उज्जवल भविष्य आपका इंतजार कर रहा है। धन्यवाद। जय हिंद। जय छत्तीसगढ़।

Growth story-पांच महिला पंचों के संघर्ष और साहस की कहानी

घाघरे वाली क्या कर लेगी पंचायत जाकर  

जनता की नायिकाएंः  बाएं से चैखी बाई, कडौली बाई, सोमुदी बाई, देवली बाई और वेल्की बाई
लखन सालवी

गांवों में पुरूषों की राजनीति थी. पंचायतों में उनका राज था, महिलाएं कभी पंचायत में पहुंच भी जाती थीं तो घूंघट तान चुपचाप एक तरफ बैठी रहती थीं. जब हम पहली बार चुनाव लड़ीं तो लोगों ने कहा कि क्या कर लेगी ये घाघरी वाली पंचायत में जाकर...

घूंघट त्यागा, रूढि़वादी विचारों को त्यागा, सामाजिक कुरीतियों को छोड़ा, बैठक की, महिलाओं को संगठित किया, शिक्षित र्हुइं, अपने अधिकारों को जाना और आज ग्राम पंचायत में भागीदारी सुनिश्चित कर गांव के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं.ये सब आसानी से नहीं हुआ. दहलीज लांघी तो समाज के बुजुर्गों ने बंदिशे लगाईं, पतियों ने मारपीट की, देवली (देऊ) बाई के पति ने तो कुल्हाड़ी से उसके सिर पर वार कर दिया. आंखों के आगे घूंघट का पर्दा पीढि़यों से पड़ा था जो उजाले की ओर बढ़ने नहीं देता था.बढ़ती भी तो ढोकर खाकर गिर जातीं या गिरा दी जाती थीं. पर्दे ने अभिव्यक्ति की आजादी को भी दबाए रखा.लेकिन इन महिलाओं पर तो जुनून सवार था बदलाव का. एक सामाजिक संगठन के संपर्क र्में आइं, शिक्षित हुईं और ग्राम सभा व ग्राम पंचायत की ताकत को समझा. फिर पंचायतीराज व आरक्षण का लाभ लिया. देवली बाई कहती हैं, ‘लोग देखे तो भले देखे, मैं तो ग्राम सभा में जो कहना होता है बिना घूंघट के खुलकर कहती हूं, मैं घूंघट नहीं निकालती हूं, घूंघट निकालूं तो बोल नहीं पाती हूं.’

राजस्थान के उदयपुर जिले से 20-25 किलोमीटर दूर के पई गांव की आदिवासी समुदाय की 5 महिलाएं देवली बाई, कडौली बाई, चैखी बाई, वेल्की बाई व सोमुदी बाई बदलाव के लिए सतत प्रयास कर रही हैं. दो दशक पूर्व वे एक सामाजिक संस्था आस्था से प्रेरणा लेकर, बंदिशों से आजाद हुईं और चुप्पी तोड़कर घर से बाहर निकलीं. मौजूदा समय में पांचों महिलाएं पई ग्राम पंचायत में वार्ड पंच है. देवली बाई 3 बार, कडौली बाई 3 बार, रोड़ी बाई 2 बार, चैखी बाई 4 बार तथा सोमुदी बाई 2 बार वार्ड पंच रह चुकी है. कडौली बाई तो पंचायत समिति सदस्य भी चुनी गई. इन महिलाओं ने अन्य महिलाओं को भी आगे लाने का प्रयास किया. इस बार वेलकी बाई को भी वार्ड पंच का चुनाव लड़वाया. ग्राम पंचायत में इनकी पूर्ण भागीदारी नजर आती है. कोरम में इनका बहुमत है. सभी एक सूर में गांव के विकास के लिए प्रस्ताव रखती हंै. देवली बाई कहती हैं गांवों में पुरूषों की राजनीति थी. पंचायतों में उनका राज था, महिलाएं कभी पंचायत में पहुंच भी जाती थी तो घूंघट तान चुपचाप एक तरफ बैठी रहती थी. जब हम पहली बार चुनाव लड़ीं तो लोगों ने कहा कि ‘‘क्या कर लेगी ये घाघरी वाली पंचायत में जाकर.’’ नयाफला गांव के भैरूलाल का कहना है कि वार्ड पंच महिलाओं का यह ग्रुप सरकार की विकास योजनाओं का लाभ लोगों तक पहूंचाने में कार्य कर रहा है. ग्राम पंचायत के कार्यों पर निगरानी भी रखती है. अन्य दिनों में गांवों में जाना, लोगों की समस्याओं को जानना एवं कोरम में उन समस्याओं के निराकरण करवाना ही इनका मुख्य कार्य है.

पांचों पंच महिलायें निरक्षर थीं इसलिए साक्षरता कार्यक्रम से जुड़कर पहले खुद अक्षर लिखना-पढ़ना सीखीं. फिर गांवों  की महिलाओं को पढ़ने के लिए प्रेरित किया, बच्चे बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया. संघर्ष किया और ज्ञापन दे दे कर आंगनबाडि़यां व स्कूल खुलवाए और जनसमस्याओं का समाधान करना ही इनका मुख्य ध्येय बन गया है. इनके जुझारू संघर्षो  का नतीजा है कि क्षेत्र की करीब 3000 महिलाएं इनसे जुड़ी हुई हैं. इन सभी ने मिलकर शराबबंदी का महत्वपूर्ण कार्य किया है. वन भूमि अधिकार, सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार जैसे मुद्दों पर पांचों महिला पंचों ने सक्रिय भूमिका निभाई है.देवली बाई ग्राम पंचायत व पंचायत समिति से सूचना के अधिकार के तहत सूचनाएं लेती रहती हंै. देवली बाई अधिकारियों से कहती हैं-सूचना दो. अगर नहीं देते हो तो लिखकर दो. देवली के सवाल सुनकर अधिकारी भी झेंप जाते हैं. बकौल देवली, ‘सूचना प्राप्त करना हमारा अधिकार है, सूचना देनी ही पडेगी.’ कई बार अधिकारियों ने उनके आवेदन लेने से ही इंकार कर दिया, दो मर्तबा आवेदन की रसीद नहीं दी. एक विकास अधिकारी ने यहां तक कहा कि सूचना लेकर क्या करोगी ? लेकिन देवली बाई की तर्कसंगत बहस एवं जागरूकता के आगे अधिकारियों को झूकना पड़ा और उन्होंने आवेदन लिए और सूचनाएं भी दीं. देवली बाई ने हाल ही में 27 फरवरी को सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करके सूचना मांगी है कि ‘‘उदयपुर से सराड़ा तक कितने लोगों की जमीन कब्जाई गई है?’’ सामान्य सी दिखने वाली देवली बाई जब वन भूमि अधिकार के पट्टों आदि के आंकड़े बताती हंै तो हर कोई चकित रह जाता है. बताती हैं कि 103 लोगों को पट्टे दिलवा दिये गये हैं और लगभग 400 आवेदनों पर कार्यवाही चल रही है. इन्होंने पेंशन योजनाओं के लाभ दिलवाने में सराहनीय कामे किए हैं. 2000 मजदूरों को मनरेगा के तहत काम नहीं मिल रहा था, इन्होंने बैठक की और जिला कलक्टर को अवगत कराया, संघर्ष की बदौलत उन्हें रोजगार मिला. सरकार के ‘प्रशासन गांव के संग अभियान’ की तरफदारी करते हुए कड़ौली बाई कहती हैं, ‘इस अभियान के तहत आयोजित शिविरों में लोगों के प्रशासन से संबंधित अधिक से अधिक कार्य करवाए जा सकते हैं. गांव वालों की समस्याओं के समाधान करने में इस प्रकार के अभियान महत्वपूर्ण हैं. हमने इस कार्यक्रम के तहत लोगों की राशनकार्ड, जाॅब कार्ड, पेंशन, प्रमाण पत्र, बिजली कनेक्शन, जमीन संबंधीत समस्याओं के समाधान करवाए हंै.’ 

ये पंच सरकार द्वारा संचालित विभिन्न कार्यक्रमों पर निगरानी का कार्य भी करती हैं. गांव में प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक समय पर नहीं आते थे तथा पूरे समय विद्यालय में कोई नहीं रूकता था. देवली बाई को गांव की महिलाओं से जब ये जानकारी मिली तो शिविर में इस मुद्दे को उठाया. शिविर प्रभारी ने उस अध्यापक को हटाकर दूसरे अध्यापक को नियुक्ति करवा दी. उसके बाद से विद्यालय समय पर खुलता है और अध्यापक भी पूरे समय विद्यालय में रूकता है. इसके अलावा वो आंगनबाड़ी केन्द्रों में पोषाहार व विद्यालयों में मिड डे मिल का अवलोकन भी करती हैं.यहीं नहीं इन महिला पंचों ने साझे प्रयास कर पिपलवास, कुम्हारिया खेड़ा, सूखा आम्बा, निचलाफल, पाबा, किम्बरी में प्राथमिक विद्यालय भी खुलवाए हैं. विद्यालय खुलवाने के लिए बार-बार ज्ञापन दिए, जिला अधिकारियों से पैरवी की. ग्राम पंचायत के वार्ड नम्बर 8 में विद्यालय भवन नहीं है, अध्यापक बच्चों को पेड़ के नीचे बैठाकर पढ़ाते हैं. वहीं वार्ड में 30 से अधिक बच्चे हैं लेकिन आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है. आजकल पांचों महिला पंच विद्यालय भवन व आंगनबाड़ी केंद्र के लिए भवन की मांग कर रही हैं. 14 फरवरी को उन्होंने जिला कलक्टर को ज्ञापन देकर भवन निर्माण की मांग की है. इन महिला पंचों की एक लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ भी है. इन्होंने सूचना के अधिकार का उपयोग कर पई ग्राम पंचायत द्वारा किए गए फर्जीवाड़े को उजागर किया. फर्जीवाडे के जानकारी मिलने बाद इन्होंने सामाजिक अंकेक्षण करवाने का प्रस्ताव रखा. सामाजिक अंकेक्षण हुआ तो पता चला कि ग्राम पंचायत द्वारा नाली निर्माण नहीं करवाया जबकि नाली निर्माण के नाम फर्जी बिल जमाकर लाखों रुपयों का गबन कर किया गया. कड़ौली बाई कहती हैं कि जब हम पहली बार वार्ड पंच बनी तो लोग कहते थे ये क्या कर लेगी घाघरी वाली. लेकिन हमनें जो काम अब तक किए हैं उन्हें देखकर अब वही लोग हमें र्निविरोध वार्ड पंच बनाने लगे हंै. देवली बाई 3 बार वार्ड पंच रह चुकी हैं और इस बार उन्हें र्निविरोध वार्ड पंच बनाया गया. रोड़ी बाई का कहना है कि हम किसी से नहीं रूकने वाली है. हम ग्राम पंचायत में न तो कुछ गलत करती है और ना ही गलत होने देती है. इन महिलाओं को यह डगर सामाजिक संगठन आस्था के कार्यकर्ताओं ने कोई 25 वर्ष पहले दिखाई थी. इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर यह सामाजिक संगठन नहीं होता तो इन महिलाओं के जीवन में परिवर्तन शायद ही संभव हो पाता. संस्था के लोगों ने इन्हें इनके अधिकारों की जानकारी दी, पंचायतीराज की जानकारी दी और साथ दिया.आज ये महिलाएं घर की दहलीज पार कर चुकी हंै, इन्होंने रूढि़वादी विचारधाराओं को तोड़कर मिसाल कायम की है.


शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

Growth story-लक्ष्मी के जज्बे को सलाम

पंचायत की मुस्कान ग्रामीण विकास पर केन्द्रित पत्रिका है और विकास गाथा इस पत्रिका का एक नियमित स्तंभ है। इस स्तंभ के अंतर्गत हम विकास की कहानी बतायेंगे जो चाहे देश के किसी भी कोने का हो, किसी भी ग्राम पंचायत का हो अथवा व्यक्ति विशेष का हो। हो सकता है विकास गाथा में अगला नंबर आपके ग्राम पंचायत का हो, आपका हो। विकास गाथा स्तंभ के लिए तुरंत फोन करें - 07489405373

इंसान में लगन, जज्बा और दृढ़ निश्चय हो तो परिस्थितियां चाहे जैसे भी हो उसके आड़े नहीं आती। झारखण्ड के रांची में जींस और टाॅप पहने एक लड़की को चाय बेचते देखकर इस बात को समझा जा सकता है।  लक्ष्मी ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और उसने अपने पढ़ाई को जारी रखा। चाय की दुकान चलाते हुए आज लक्ष्मी एमकाम की पढ़ाई कर रही है। लक्ष्मी के पास जो भी व्यक्ति चाय पीने आता है उसके जज्बे को नतमस्तक किए बिना नहीं रह पाता।

गरीबी का शिकार लक्ष्मी की छोटी-छोटी आंखों में बड़े-बड़े सपने हैं। वो उन्हें टूटने नहीं देना चाहती। लक्ष्मी रांची के कोकर इलाके में चाय बेचती है। रांची वीमेंस कॉलेज में वो अभी एमकॉम पढ़ रही है। जींस और टॉप में चाय बेचते लोग उसे देखते रह जाते हैं। एक ओर जहां ग्राहकों के लिए वो लड़की एक आदर्श बन चुकी है वहीँ अपने परिवार के लिए लक्ष्मी चाय बेच कर वो अपनी पढ़ाई का खर्च तो निकाल ही ले रही है साथ ही परिवार का भरण पोषण भी कर रही है।

चाय ही नहीं, बल्कि आदर की मिठास भी मिलती है 

पढ़ाई के प्रति लक्ष्मी की यह लगन ही है कि उसने चाय बेच कर अपनी पढ़ाई पूरी करने की ठान ली। एक झोपड़ीनुमा दुकान में तीन रुपये में गरमा-गरम चाय पीने बड़ी संख्या में लोग आते हैं। एक कारण यह भी कि यहां चाय ही नहीं मिलती बल्कि आदर की मिठास के साथ लगन भरा व्यवहार होता है। लक्ष्मी के पिता रामप्रवेश तांती एक प्राइवेट संस्थान में काम करते थे, लेकिन अब रिटायर हो चुके हैं। ऐसे में लगा कि अब लक्ष्मी की पढ़ाई बंद हो जायेगी, लेकिन लक्ष्मी ने ही आगे बढ़ कर कहा कि हम कुछ ऐसा करें जिसमे पूंजी कम लगे और परिवार के लिए आय भी हो जाए। फिर क्या था लक्ष्मी ने अपने पिता के साथ खोल ली एक छोटी सी चाय दुकान। हालांकि, एमकॉम में पढ़ रही बेटी को चाय दुकान पर बिठाना लक्ष्मी के पिता को अच्छा नहीं लगता। लेकिन मुफलिसी की मार और बेटी के हायर एजुकेशन का सपना टूट न जाय इसलिए लक्ष्मी खुद अपने निर्णय से चाय दुकान को चलाने लगी। पिता की नौकरी छूटे 15 साल हो गए। कमाऊ बड़ा भाई भी पिछले साल अकाल के गाल में समा गया। बचपन से पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने वाली लक्ष्मी अपने परिवार वालों के सपनों को साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ना नहीं चाहती। लक्ष्मी एमकॉम करने के बाद बैंक में पीओ बनना चाहती है। खाली समय में दुकान पर जब ग्राहक नहीं होते तो लक्ष्मी की पढ़ाई चलती रहती है। लक्ष्मी को कभी चाय दुकान पर ग्राहकों से कोई परेशानी नहीं होती। सभी इसके जज्बे को सलाम करते हैं।

Growth story-Gram Panchayat Tarenga-बाल पंचायत का जलवा

पंचायत की मुस्कान ग्रामीण विकास पर केन्द्रित पत्रिका है और विकास गाथा इस पत्रिका का एक नियमित स्तंभ है। इस स्तंभ के अंतर्गत हम विकास की कहानी बतायेंगे जो चाहे देश के किसी भी कोने का हो, किसी भी ग्राम पंचायत का हो अथवा व्यक्ति विशेष का हो। हो सकता है विकास गाथा में अगला नंबर आपके ग्राम पंचायत का हो, आपका हो। विकास गाथा स्तंभ के लिए तुरंत फोन करें - 07489405373

रांची से लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित तारंगा गाँव में बच्चों की यह टोली गाना गाकर अपने गांव आए अतिथियों का स्वागत कर रही है. पारंपरिक आदिवासी रीति रिवाज का अनुसरण करते हुए बच्चे पत्तियों से पानी छिड़क कर हर अतिथि का स्वागत करते हैं. तारंगा पूरे देश के लिए एक मिसाल बन चुका है. यहाँ पर बच्चों की अपनी पंचायत नें तारंगा के आसपास के गाँवों की काया ही पलट कर रख दी है. बच्चों की इस पंचायत को देखने अब दूर-दूर से लोग आ रहे हैं. यह पंचायत आम पंचायतों से इस मायने में अलग है कि इसमें सिर्फ बच्चे शामिल हैं. दस साल से लेकर 16 साल तक के बच्चे अपने आसपास के गाँवों में फरमान भी जारी करते हैं और इनके फरमान को मानना सब के लिए अनिवार्य होता है. जो इनके फरमान की अनदेखी करता है, उसे सजा मिलती है. सजा इस रूप में कि बच्चों की टोली घर की रसोई में घुसकर सारा खाना खा जाती है. देश की अनूठी बाल पंचायत अशिक्षा, बाल मजदूरी और पलायन रोकने की दिशा में काम कर रही है. 
रांची और उसके साथ लगे जिलेे आदिवासी बहुल हैं. यह पूरा इलाका मानव तस्करी का गढ़ रहा है. रांची, गुमला, सिमडेगा और आसपास के जिलों से छोटी-छोटी बच्चियों को महानगरों में बेच दिया जाता है जहाँ इनसे नौकरानी का काम करवाया जाता है.

आम चलन

स्कूल भेजने की बजाए समाज के लोगों में बच्चों को ईंट भट्ठों, निर्माण स्थलों और खेतों में मजदूरी करने भेज देने का चलन आम है. तारंगा की बाल पंचायत के सदस्य स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों के घर धावा बोल रहे हैं. बच्चों के अभिभावकों को उन्हें स्कूल भेजने की सलाह दे रहे हैं और अगर अभिभावक उन्हें फिर भी स्कूल भेजने की बजाए मजदूरी करने भेज देते हैं तो यह बच्चे उनके घरों में धावा बोल देते हैं. इतना ही नहीं, फरमान नहीं माने वालों के घर में घुसकर वह खाना भी खा जाते हैं. बुधवार की सुबह तारंगा में भारतीय किसान संघ की ओर से संचालित ब्रिज कोर्स सेंटर में बच्चे जमा हैं. हर बुधवार को तरंगा में बाल पंचायत लगती है. ब्रिज कोर्स सेंटर के सुनील गोता कहते हैं कि पंचायत शुरू होने से पहले बच्चे गाँवों का भ्रमण करते हैं. वह कहते हैं, ‘सुबह पहला काम होता है भ्रमण. इस दौरान पंचायत के सदस्य गाँव के लोगों को सामजिक बुराइयों और शिक्षा के महत्त्व के बारे में समझाने का काम करते हैं. भ्रमण के बाद समीक्षा का दौर चलता है.’

बच्चों का दल तरंगा के पास ही एक गाँव में बिनीता के घर जा धमका. बिनीता के पिता बच्चों के दल के आगे बेबस नजर आये. वह शर्मा भी रहे थे क्योंकि बिनीता घर पर नहीं थी. ‘अभी तो यहीं थी. पता नहीं कहाँ चली गयी’ वह झेंपते हुए कहते हैं. लेकिन बच्चों का दल बिनता के पिता की दलील मानने को तैयार नहीं है. बच्चे कहते हैं कि वह दो बार उनके घर आ चुके हैं मगर इसके बावजूद बिनीता ने स्कूल आना शुरू नहीं किया है. बच्चों को खबर मिली है कि बिनीता मजदूरी करने जाती है. बाल पंचायत के सदस्यों नें बिनीता के पिता से वादा करवाया कि वह उसे नियमित रूप से स्कूल भेजेंगे. दल नें उन्हें साफ लफ्जों में धमकी भी दी कि अबकी बार जब वह बिनीता के घर आएँगे तो सारा खाना खा जाएँगे.

बाल पंचायत का काम

‘पंचायत के सदस्य गाँव के लोगों को सामजिक बुराइयों और शिक्षा के महत्त्व के बारे में समझाने का काम करते हैं. भ्रमण के बाद समीक्षा का दौर चलता है.’
सुनील गोता, तारंगा निवासी

बिनीता के पिता का कहना था कि लाख समझाने के बावजूद वह स्कूल नहीं जाती है. मगर वह कहते हैं कि अब ऐसा नहीं होगा और वह स्वयं सुनिश्चित करेंगे के वह स्कूल जाए. गाँवों के भ्रमण के बाद बच्चों की टोली वापस अपने ब्रिज कोर्स सेंटर लौट आती है. फिर यहाँ विधिवत पंचायत लगती है ताकि वह सुबह के कार्यक्रम की समीक्षा कर सकें और नयी योजना भी बना सकें. बाल पंचायत की बैठक रतनी कुमारी की अध्यक्षता में हो रही है. बैठक में सबका अलग-अलग काम है. कोई रजिस्टर में बैठक की प्रोसीडिंग लिखता है तो कोई उन बच्चों की फेहरिस्त तैयार करता है, जो पढने की बजाए मजदूरी करने जाते हैं. पंच परमेश्वरों का फैसला होता है कि तारंगा के ही जतन ओराँव और परबतिया के अभिभावक समझाने के बावजूद अपने बच्चों को मजदूरी के लिए भेजते हैं.

स्कूल नहीं भेजते. इस लिए उनके अभिभावकों का वह रास्ता रोकेंगे और उनके घर घुसकर खाना खा जाएँगे. यह कब होगा इसे गोट रखा गया है ताकि सूचना जतन और परबतिया के अभिभावकों तक नहीं पहुंचे. झारखंड में हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनाव के दौरान भी तारंगा के बच्चों नें बहुत अहम् किरदार अदा किया है. पंचायत चुनाव के दौरान वही उम्मीदवार जीत पाया, जिसे बच्चों नें चाहा.

बाल पंचायत नें नारा दिया:
जो बच्चों की हित में काम करेगा वो पंचायत पर राज करेगा.’ इस पहल के बाद पंचायत चुनाव के उम्मीदवारों नें भी बच्चों के हितों को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया. आज बाल पंचायत नें तारंगा और इसके आस पास के इलाकों की एक नयी इबारत लिखनी शुरू कर दी है. आज बच्चों को उनके अभिभावक मजदूरी करने की बजाए स्कूल भेज रहे है.

Growth story-Gram Panchayat Nandeli-खुद बेसहारा,सरपंच बन बनी लोगों का सहारा

पंचायत की मुस्कान ग्रामीण विकास पर केन्द्रित पत्रिका है और विकास गाथा इस पत्रिका का एक नियमित स्तंभ है। इस स्तंभ के अंतर्गत हम विकास की कहानी बतायेंगे जो चाहे देश के किसी भी कोने का हो, किसी भी ग्राम पंचायत का हो अथवा व्यक्ति विशेष का हो। हो सकता है विकास गाथा में अगला नंबर आपके ग्राम पंचायत का हो, आपका हो। विकास गाथा स्तंभ के लिए तुरंत फोन करें - 07489405373

तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनों, हिन्दी फिल्म के इस गीत को पैरों से अपाहिज एक लड़की चरितार्थ कर रही है। अपनी विकलांगता के कारण हीन भावना से ग्रसित होने और अपने आपको कमजोर समझने की बजाय लक्ष्मी ने अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश की। अपने गांव को विकास के पथ पर आगे बढ़ाने के लिए लक्ष्मी ने सरपंच का चुनाव लड़ा तथा अपनी जुझारू प्रवृत्ति के कारण वह सरपंच चुनी भी गई। आज कुमारी लक्ष्मी जांजगीर चांपा जिले के ग्राम पंचायत नंदेली की सरपंच है तथा अपने गांव के विकास के लिए भरसक प्रयास कर रही है। 

समर्थ और सशक्त युवतियां अब प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ी है यह बात किसी से छुपी नहीं है मगर जब बात विकलांग होते हुए पूरे गांव का प्रतिनिधित्व करने की आती है तब कुमारी लक्ष्मी पटेल का नाम सामने आता है। महज 23 साल की उम्र में जब युवतियां अध्ययन-अध्यापन में जुटी होती है तो इस उम्र में कुमारी लक्ष्मी ने गांव को विकास के मार्ग पर लाने का बीड़ा अपने सिर पर उठा लिया। छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले के सक्ती ब्लाक मुख्यालय से महज 2 कि.मी.की दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत नंदेली जहां पंचायत चुनाव में अपने 8 विरोधियों को पछाड़ते हुए सरपंच के चुनाव में कुमारी लक्ष्मी पटेल ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर 11 फरवरी 2010 को सरपंच पद की शपथ ली। पैर से पोलियो ग्रस्त कुमारी लक्ष्मी ने गांव में शराबखोरी, जुआ जैसे सामाजिक कुरीतियों को दूर करने महिलाओं को एकजुट करना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही ग्राम सहित आश्रित ग्राम में विकास कार्य कराने वो लगातार सक्रिय रहती है तथा जनप्रतिनिधियों का चक्कर काटती रहती है। एक भेंटवार्ता में युवा सरपंच कुमारी लक्ष्मी पटेल ने बताया कि गांव के साधारण परिवार में जन्मी 4 बहनों में वह सबसे बड़ी है, जन्म के साल भर बाद ही उसके पैर पोलियो से ग्रस्त हो गये जिसके बाद वो अब तक बैसाखी के सहारे ही चल फिर सकती है मगर यह बीमारी उसके हौसले को नहीं डिगा सकी और वो आज एक बड़े पंचायत की ग्राम सरपंच है। कुमारी लक्ष्मी कहती है कि ग्राम पंचायत नंदेली व बोईरडीह मिलकर एक पंचायत है, इससे पहले तक केवल बोईरडीह से ही सरपंच चुने जाते थे और यह पहला अवसर है जब नंदेली से कोई व्यक्ति सरपंच चुना गया है। कुमारी लक्ष्मी पटेल पैर से पोलियो ग्रस्त है जो बैसाखी के सहारे ही चलती फिरती है, मगर उनके हौसले बुलंद है। कुमारी लक्ष्मी बताती है कि गांव में करीब 4 हजार की जनसंख्या है और कुल 18 वार्डों में 4 पुरूष तथा शेष महिला पंच है जिससे उन्हे महिलाओं का सहयोग बढि़या मिलता रहता है। राजनीति में प्रवेश करने के प्रश्न पर कुमारी लक्ष्मी पटेल कहती है कि गांव में विकास लाने तथा कुरीतियों को दूर करने उनके द्वारा सरपंच पद का चुनाव लड़ा गया जिसमें उसे जीत भी मिली और लक्ष्मी गांव के लोगों के विकास के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरी है हालांकि कुमारी लक्ष्मी पटेल बहुत ज्यादा दिनों तक राजनीति में नहीं रहना चाहती तथा वो किसी सरकारी नौकरी में जाकर वहां भी लोगों की सेवा करना चाहती है। 

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

Growth story-Gram Panchayat Birra-बिर्रा गांव का गौरव शुभम

पंचायत की मुस्कान ग्रामीण विकास पर केन्द्रित पत्रिका है और विकास गाथा इस पत्रिका का एक नियमित स्तंभ है। इस स्तंभ के अंतर्गत हम विकास की कहानी बतायेंगे जो चाहे देश के किसी भी कोने का हो, किसी भी ग्राम पंचायत का हो अथवा व्यक्ति विशेष का हो। हो सकता है विकास गाथा में अगला नंबर आपके ग्राम पंचायत का हो, आपका हो। विकास गाथा स्तंभ के लिए तुरंत फोन करें - 07489405373

एक छोटा सा गांव, एक ऐसा गांव जहां शासकीय तो क्या प्राइवेट कालेज तक नहीं है। स्कूल स्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद लोगों को बाहर का रूख करना पड़ता है। ऐसे में यहां से स्कूल स्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद कोई अपने गांव, जिला, प्रदेश व देश की सीमा से परे दूसरे देश जा पंहुचे तो एक छोटे से गांव के गौरव उस बच्चे के प्रति जिज्ञासा जगना स्वाभाविक है। कभी पोराबाई केे नाम से कुख्यात हो चुके जांजगीर चांपा जिले के ग्राम बिर्रा के डाॅ. आई पी शुक्ला एवं श्रीमती सीमा शुक्ला का छोटा पुत्र शुभम शुक्ला रूस में डाक्टरी की पढ़ाई कर रहा है। शुंभम के बिर्रा आगमन पर हमने शुभम और रूस के बारे में उनसे बात की।

रूस में मुख्य रूप से दो भाषाओं में शिक्षा प्रदान की जाती है। एक उनकी मातृभाषा में तो दूसरी इंग्लिश में। रूसी लोग अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा ग्रहण करना पसंद करते हैं जबकि बाहर देश से रूस पंहुचे लोग ज्यादातर इंग्लिश माध्यम में पढ़ाई करते हैं। ऐसे ही एक इरस्त्रानी कालेज स्टेवरो पोल स्टेट मेडिकल एकेडमी में मैं एम.डी. कोर्स कर रहा हूं तथा तीसरे वर्ष का छात्र हूं। अन्य योरोपीय देशों के मुकाबले रूस में भारतीयों के प्रति सद्भावना एवं मित्रवत व्यवहार किया जाता है इसलिए मौसम की प्रतिकूलता के बावजूद रूस में व्यापक पैमाने पर भारतीय छात्र शिक्षा प्राप्त करते हैं। हमारे कालेज में ही हमारे जिले, प्रदेश से लेकर देश के कोने-कोने से छात्र मौजूद हैं तथा लगभग 350 छात्र भारतीय है वहीं 150 से 200 छात्र पाकिस्तान, श्रीलंका, ग्रीस, अफगानिस्तान, इराक आदि दूसरे देशों से है।

परीक्षा पद्धति भिन्न

हमारे देश और रूस की परीक्षा पद्धति में भारी अंतर है। वहां हमारे देश की तरह परीक्षा के लिए कोई विशेष तारीख और समय तय नहीं की जाती और ना ही लिखित परीक्षा होती है। वहां जब परीक्षा की सूचना दी जाती है तब अपनी तैयारी के हिसाब से छात्र शिक्षकों को सूचित करते हैं कि अमुक विषय की उसकी तैयारी हो चुकी है और उस विषय में परीक्षा दिलानें के लिए वे तैयार है तब शिक्षक उन्हें निर्धारित तिथि और समय बताते हैं जिसमें शिक्षकों की टीम उनसे मौखिक प्रश्न पूछते हैं और जब लगता है कि छात्र 60 प्रतिशत से ज्यादा पाने के लायक है तो उसे पास कर देते हैं नहीं तो फिर से तैयारी करके आने के लिए कह वापस भेज देते हैं।

देशप्रेम की भावना से लबरेज

रसियन लोगों में देश प्रेम की भावना कूट कूट कर भरी हुई है। उन्हें अपनी मातृभाषा से प्यार है इसलिए वो अपनी मातृभाषा में पढ़ाई तो करते ही हैं, साथ ही साथ सभी तरह के बोर्ड सिर्फ और सिर्फ रसियन भाषा में ही लिखे दिखाई देते हैं। वे अपने देश के कानून व नियमों का पालन करने में प्रतिबद्ध नजर आते हैं। पान ठेले से लेकर मेडिकल तक सभी के टेक्स ईमानदारी से शासन के खजाने में जाता है। यहां लोग सड़कों पर गंदगी नहीं फैलाते। जेबरा क्रासिंग से ही सड़क पार करते हैं। यदि कोई व्यक्ति वाहन से दुर्घटना कर देता है तो इसकी सूचना खुद पुलिस को देता है।

राजकपूर और मिथुन के दीवाने

रसियन लोग हिन्दी फिल्मी कलाकारों में सबसे ज्यादा राजकपूर और मिथुन चक्रवर्ती के दीवाने हैं। मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिशतानी, सर पे लाल टोपी रूरी फिर भी दिल है हिंदुस्तानी गीत आज भी यहां के लोगों का पसंदीदा गीत है वहीं मिथुन चक्रवर्ती के फिल्म डिस्को डांसर का गीत जिमी जिमी आजा आजा रसियन मूवी में भी है।

हिटलर की मौत पर जश्न

हिटलर के मौत के दिन को रूस में विक्ट्री डे के रूप में मनाते हैं। इस दिन पूरे देश में जश्न का माहौल रहता है।

स्व. इंदिरा गांधी के प्रति आदर

भारत की पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रति रसियन लोगों के मन में इतना ज्यादा सम्मान है कि वो विश्व महिला दिवस 8 मार्च को उनकी पूजा करते हैं।

शिक्षा के लिए उपयुक्त स्थान

विपरीत जलवायु के बाद भी शुभम शुक्ला का मानना है कि डाक्टर बनने के लिए उनका रूस का चयन बिल्कुल सही था। दो भाईयों में साकेत शुक्ला बड़ा भाई है जिनके नाम पर उनके छोटे से गांव बिर्रा में ही साकेत मेडिकल स्टोर है वहीं बिर्रा के सरस्वती शिशु मंदिर में प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए रूस चले गए। रूस जाने के रास्ते के बारे में शुभम का कहना है कि उन्होंने ए.जे. ट्रस्ट एजुकेशनल कंसलटेंसी चेन्नई में परीक्षा दिलाई थी जिसके बाद मेरिट बेस पर वह पढ़ाई के लिए रूस पंहुच गए इसी तरह से दूसरे छात्र भी आ सकते हैं।

गांव में लोगों की सेवा करना लक्ष्य

यह शुभम शुक्ला की माता श्रीमती सीमा शुक्ला और पिता डा. आई. पी. शुक्ला के द्वारा दिए गए संस्कार और रसियन लोगों से ग्रहण की गई देश प्रेम की भावना ही है कि शुभम शुक्ला अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने गांव वापस लौट कर यहीं अस्पताल खोलकर लोगों की सेवा करना चाहते हैं।

Growth story-Gram Panchayat Kera-ग्राम पंचायत केरा-जहां होती है तालाबों की शादी

पंचायत की मुस्कान ग्रामीण विकास पर केन्द्रित पत्रिका है और विकास गाथा इस पत्रिका का एक नियमित स्तंभ है। इस स्तंभ के अंतर्गत हम विकास की कहानी बतायेंगे जो चाहे देश के किसी भी कोने का हो, किसी भी ग्राम पंचायत का हो अथवा व्यक्ति विशेष का हो। हो सकता है विकास गाथा में अगला नंबर आपके ग्राम पंचायत का हो, आपका हो। विकास गाथा स्तंभ के लिए तुरंत फोन करें - 07489405373

विवाह का नाम सुनते ही आंखों के सामने एक परिदृश्य घुम जाता है जिसमें विवाह का सजा धजा एक मंडप होता है। मंडप के नीचे अपने सर पर सेहरा बांधे दूल्हा, हाथों में मेंहदी रचाई आसमान से उतरी किसी परी के सदृश्य नजर आती, चटक रंग की साड़ी पहने दुल्हन, अठखेलियां करती दुल्हन की सहेलियां, शरारत करते बाराती, नम आंखों से खुशियों में शामिल होते दुल्हन के परिजन तथा एक अलग ही रौब में नजर आते दुल्हे के रिश्तेदार शामिल होते हैं। बैंड बाजा, नाच गाना ये सब नजर आता है। मगर हम आपको एक अनोखी शादी में ले कर चलते है इस अनोखी शादी में पूरा माहौल तो विवाहमय है  लेकिन दुल्हा और दुल्हन कुछ हटकर है। शादी का पूरा माहौल तो है बस दूल्हा और दुल्हन बदल गए है क्योंकि इस शादी में दुल्हन के वेश में एक तालाब को सजाया गया है वहीं दूल्हा है भगवान जी।

जी हां ये है एक तालाब की शादी जो जांजगीर-चांपा जिले के ग्राम केरा में आयोजित कराई जा रही है  यह है जांजगीर चांपा जिले के नवागढ़ विकासखण्ड अंतर्गत आने वाला ग्राम  पंचायत केरा जहां सजा है एक मंडप और यहाँ है बैंड बाजा, पंडित और नाचते गाते झूमते हुए बाराती इन सबको देख कर लगता है यहाँ किसी की शादी की जा रही है ? पर किसकी शादी है... ?  क्योंकि इस शादी में ना तो लड़का दूल्हा है और ना ही लड़की दुल्हन ?  फिर किसकी शादी यहाँ पर की जा रही है हम बताते है यह शादी खास है क्योंकि यहाँ लडके लड़की की नहीं बल्कि तालाब की शादी हो रही है। सुन कर चैकिए मत यहाँ तालाब की शादी कराई जा रही है और ये शादी अस्सी साल के बाद कराई जा रही है इस गाँव के लोगो का मानना है की तालाब की शादी कराने से सौ कन्यादान के बराबर पुण्य मिलता है और तालाब की शादी करने के बाद तालाब पवित्र हो जाता है और यहाँ हर तरह के शुभ कार्य किये जा सकते है इसलिए ये शादी पूरे विधि विधान के साथ उसी तरह कराई जाती है जिस तरह लडके लड़कियों की शादी की जाती है यह शादी तीन दिनों तक चलती है जिसमे तेल हल्दी चढाने से ले कर कन्यादान, फेरे, बारात निकालने के साथ सब कुछ वैसा ही होता है जैसे आम शादियों में होता है लेकिन इस शादी में दुल्हन होती है तालाब और दूल्हा होता है भगवान लक्ष्मी नारायण। गाँव में अस्सी साल के बाद होने वाली तालाब के एतिहासिक विवाह को लेकर ग्रामीणों में खासा उत्साह देखने को मिला इस विवाह के बारे में लोगो का कहना है की यह एक यादगार पल होता है और एक तालाब का सिर्फ एक बार ही विवाह किया जाता है और यह पुण्य का काम है जिसे कराने का मौका कभी कभी मिलता है। यह विवाह उसी तरह संपन्न किया जाता है जिस तरह एक कन्या का विवाह होता है। सभी रीति-रिवाजों के साथ ग्रामीणों ने राजापारा नाम के तालाब के विवाह संस्कार को पूर्ण कराया।

दरअसल, महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत करीब 5 लाख रूपये खर्च कर केरा गांव के ‘राजापारा तालाब’ का गहरीकरण कराया गया और जल संरक्षण की दिशा में ग्रामीणों ने अहम योगदान देते हुए, एक पुरानी परंपरा के माध्यम से घटते जल स्तर को बचाने के लिए अपनी पूरी सहभागिता निभाई। इस अनूठे विवाह के बारे में जानकर कोई भी एकबारगी विश्वास नहीं कर रहा है और यही कारण है कि केरा में संपन्न हुई इस अनूठी परंपरा, समाज के लिए एक मिसाल भी साबित हो रही हैं। ग्राम पंचायत केरा सरपंच लोकेश शुक्ला का कहना है कि आठ दशक पहले गांव के ‘बर तालाब’ में इस तरह विवाह का आयोजन किया गया था। इसके बाद यह परंपरा अभी निभाई गई है। 11 जून को कलश यात्रा के साथ विवाह संस्कार की प्रक्रिया शुरू हुई। इस दौरान कलश यात्रा में बड़ी संख्या में कन्याएं, युवती व महिलाएं समेत ग्रामीण शामिल हुए। गांव में तालाब विवाह की पुरानी परिपाटी तो है ही, साथ ही आज के दौर में घटते जल स्तर के लिहाज से भी यह इसलिए काफी महत्वपूर्ण भी है कि इस बार ‘राजापारा तालाब’ का मनरेगा के तहत गहरीकरण कराया गया है। इससे जल संवर्धन की दिशा में भी बेहतर कार्य हो रहा है। दूसरी ओर ग्रामीणों में यह भी मान्यता है कि तालाब के विवाह से गांव में जलजनित बीमारी नहीं फैलती और किसी तरह दैवीय प्रकोप का संकट नहीं होता। केरा गांव में संपन्न हुए तालाब विवाह में वर के रूप में भगवान वरूणदेव को विराजित किया गया, वहीं वधु के रूप में वरूणीदेवी को पूजा गया। ग्रामीणों ने पूरे उत्साह से इनका विवाह रचाया और दो दिन तक चले विवाह कार्यक्रम में हर वह रस्म पूरी की गई, जो किसी व्यक्ति की शादी में निभाई जाती है। तालाब विवाह में लोगों का उत्साह देखते बना। केरा में तालाब के इस अनोखे विवाह में क्षेत्र की सांसद श्रीमती कमला देवी पाटले भी शरीक हुई।

Growth story-Gram Panchayat Rajnagar-चुनौतियों से लड़ कर शांति बनीं आइकॉन

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बिहार में मधुबनी जिले के राजनगर प्रखंड की सिमरी पंचायत की सरपंच शांति देवी ने जो मन में ठानी, उसे हासिल करके ही दम लिया. लोगों के तानों को चुनौती मान कर उन्होंने ऐसा कर दिखाया कि आज अनपढ़, गरीब और हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए आदर्श बन गयी हैं. वह महिलाओं के वोट से जीत कर ‘पंचायत सरकार’ चला रही हैं. खुद समाज के ताने, जुल्म व सितम सह चुकी शांति समाज की महिलाओं पर हो रहे शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद कर रही हैं.

17 वर्ष की उम्र में हुई थी शादी

शांति की 17 वर्ष की कम उम्र में ही शादी हो गयी थी. पति मुंबई में काम करते हैं. शादी के बाद जब वह गांव गयीं, तो देखा कि दबंग लोग गरीबों पर जुल्म-सितम ढाते हैं. यह सब देखकर उन्हें अच्छा नहीं लगता था. उन पर घर की जिम्मेदारी तो थी ही. इसके अलावा दो छोटे-छोटे बच्चों की पढ़ाई और सास- ससुर का भी ख्याल रखना होता था. घर की स्थिति को देखते हुए वह ‘जीविका स्वयं सहायता समूह’ की सदस्य बन गयीं. हफ्ते में 5 से 10 रुपया जमा करने लगीं. पहले संस्था की कोषाध्यक्ष बनीं और आज जीविका मित्र हैं. 

महिलाओं को सूदखोरों से बचाया

गरीब महिलाएं घर चलाने के लिए सूद पर पैसे लेती थीं. शांति भी इसकी शिकार हुईं. उन्हें सास के इलाज के लिए जेवर को सूद पर रखना पडा. ‘जीविका’ से जुड़कर वह और अन्य महिलाएं मिल कर हफ्ते में 5-10 रुपये जमा करने लगीं. धीरे -धीरे समूह में अन्य महिलाओं ने भी पैसा जमा करना शुरू किया. आज शांति देवी ही महिलाओं को10-12 हजार रुपये तक कर्ज खुद देती हैं. महिलाओं को 20 बार में 500-500 रुपये कर कर्ज लौटाना होता है और इस पर सूद एक रुपये की दर से लगता है. आज उनके नेतृत्व में ऐसे 12 समूह काम कर रहे हैं. प्रत्येक समूह में 12-14 महिलाएं हैं. 

क्या कहती हैं शांति

मैंने जब काम करना शुरू किया, दबंगों ने बार-बार अचड़नें डालने की कोशिश की.मुङो सरेआम मारा-पीटा भी गया. उस वक्त मेरी चीख किसी ने नहीं सुनी, पर ‘जीविका’ से जुड़ी अन्य महिलाओं ने मेरा पूरा साथ दिया. हम सभी ने मिल कर दबंगों का सामना करने का निश्चय कर लिया.

दबंगों का सामना करने के लिए ही मैं 2011 में पहली बार पंचायत चुनाव में खड़ी हुईं और जीत भी गयी. आज मैं सरपंच की कुर्सी पर सिर्फ गांव की दीदी लोगों की बदौलत पहुंची हूं. उन्हीं लोगों के वोट के बल पर मैंने मधुबनी जिले के राजनगर प्रखंड की सिमरी पंचायत के चुनाव में आठ पुरुष उम्मीदवारों को 548 वोटों के भारी अंतर से हराया.

Growth story-एक और एमबीए सरपंच

पंचायत की मुस्कान ग्रामीण विकास पर केन्द्रित पत्रिका है और विकास गाथा इस पत्रिका का एक नियमित स्तंभ है। इस स्तंभ के अंतर्गत हम विकास की कहानी बतायेंगे जो चाहे देश के किसी भी कोने का हो, किसी भी ग्राम पंचायत का हो अथवा व्यक्ति विशेष का हो। हो सकता है विकास गाथा में अगला नंबर आपके ग्राम पंचायत का हो, आपका हो। विकास गाथा स्तंभ के लिए तुरंत फोन करें - 07489405373

कौन कहता है कि राजनीति अब जनसेवा का माध्यम नहीं रहा तथा राजनीति को सिर्फ वही लोग अपना करियर बनाना चाहते हैं जिसकी राजनीतिक विरासत हो अथवा जिनका दूसरा मार्ग बंद हो चुका है। हमने अपने मई के अंक में एक एमबीए सरपंच छवि राजावत के बारे में आपको बताया था तथा इस अंक में हम आपके सामने फिर से एक ऐसे सरपंच की दास्तान रख रहे हैं जो कि डर्बीशायर से एमबीए है। अपनी जमात में एक से बढ़कर एक एमबीए शिक्षित लोगों को देखकर शायद हमारे गांव देहात के अंगूठा छाप सरपंचों का सीना भी फुलकर चैड़ा हो तथा वो भी गर्व से कहे कि हां देखों, हम भी सरपंच है। 

डर्बीशायर से व्यापार प्रशासन में स्नातकोत्तर डिग्री (एमबीए) हासिल करने के बाद गुरमीत सिंह बाजवा के सामने नौकरी के ढ़ेरों प्रस्ताव थे, लेकिन उनका सपना कुछ और ही था। आज वह पाकिस्तान की सीमा से लगे एक छोटे से गांव के सरपंच निर्वाचित हुए हैं।  बाजवा (28) का कहना है कि वह वही कर रहे हैं, जिसका उन्होंने वादा किया था। उन ग्रामीणों की सेवा करने का जो अभी भी गरीबी और भ्रष्टाचार के शिकार हैं। बाजवा ने बताया कि एक समय मेरा वादा अपने परिवार के सपने को पूरा करने का था, जो मुझे विदेश भेजना चाहता था और अब मेरा वादा अपने लोगों की सेवा करने का है। बाजवा ने कहा कि समाज के लिए काम करने में व्यक्तिगत उत्कृष्टता कोई मायने नहीं रखती। जारी पंचायत चुनाव ने बाजवा के रूप में जम्मू एवं कश्मीर में एक और प्रतिमान दिया है। बाजवा का गांव पाकिस्तान के साथ लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रणबीरसिंह पोरा क्षेत्र में पड़ता है। बाजवा क्षेत्र के एक अति सम्पन्न और रसूख वाले परिवार से हैं। उनके पिता त्रिलोक सिंह बाजवा पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सदस्य हैं।

गांव के मतदाताओं ने 17 मई को युवा बाजवा को अपना सरपंच चुनने का निर्णय लिया। बाजवा को 735 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी करमजीत सिंह को मात्र 140 वोट मिले। कांग गांव में सिखों व गैर सिखों की मिश्रित आबादी है। यहां जाट समुदाय बहुसंख्यक है। यह समुदाय पंजाब और उससे लगे जम्मू के इलाके में फैला हुआ है। पंचायत चुनाव में हिस्सा लेने से पहले बाजवा गांव में ही रहे। जम्मू में प्रारम्भिक शिक्षा के बाद वह 2004 में ब्रिटेन चले गए। वह 2008 में जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा चुनाव में अपने पिता की मदद के लिए भारत लौटे। लेकिन उनके पिता चुनाव हार गए। पिता की ऊंची पहुंच के बावजूद पंचायत चुनाव लड़ने के पीछे बाजवा ने कहा कि एक छोटा कदम हमेशा बड़ी मंजिल के लिए रास्ता तैयार करता है। मैं अपने लोगों के लिए काम करना चाहता था, उनकी सेवा करना चाहता था। और यदि मैं अच्छी तरह से उनकी सेवा कर पाया, तो वह अपने आप में एक बड़ा कदम होगा।

जम्मू एवं कश्मीर के सीमांत गांवों में कई समस्याएं हैं। खेतों की सिंचाई के लिए पानी की कमी, और पानी और भूमि को लेकर बार-बार होने वाले झगड़े।  सीमांत गांवों के निवासी भारत-पाकिस्तान सम्बंधों में तनाव के भी शिकार बनते रहते हैं। बाजवा ने एक बहुत बड़ी समस्या, भ्रष्टाचार का पहले ही खुलासा कर रखा है। उन्होंने कहा कि आज यहां मेरे सामने जो सबसे बड़ी समस्या है वह यह कि 90 प्रतिशत भूस्वामियों ने खुद को गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) के परिवारों में पंजीकृत करा रखा है। इसके परिणामस्वरूप जो वाकई में बीपीएल परिवार हैं वे पीडि़त हो रहे हैं। बाजवा ने कहा कि मैं सभी वर्गों के सामाजिक उत्थान एवं न्याय के लिए काम करुंगा। यही मेरा लक्ष्य है।

Growth story-Gram Panchayat soda-विकास गाथा-ग्राम पंचायत सोड़ा

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महिला सरपंच ने बदली गांव की तकदीर

राजस्थान के सोडा गांव की युवा सरपंच छवि राजावत जब दुनिया की सबसे बड़ी सभा संयुक्त राष्ट्र संघ में बोलने के लिए खड़ी हुई तो पूरा हाल तालियों से गूंज उठा। 30 वर्षीय छवि ने संयुक्त राष्ट्र संघ 11 वें सूचना गरीबी विश्व कांफ्रेंस में 24 और 25 मार्च को हिस्सा लिया और दुनियाभर के देशों के वरिष्ठ राजनेताओं व राजदूतों के बीच गरीबी से लड़ने और विकास के तरीके पर अपने विचार व्यक्त किए। क्या आप यकीन करेंगे कि आज वह लड़की अपने गांव की सरपंच है जिसने चित्तूर आंध्रप्रदेश के ऋषिवैली स्कूल से दसवीं तक पढ़ाई करने के बाद की पढ़ाई मेयो कालेज, अजमेर से की। इसके बाद दिल्ली के लेडी श्रीराम कालेज से स्नातक और फिर पूणे से एमबीए करने के बाद पहली नौकरी टाइम्स आफ इंडिया में की ...

घोड़े पर सवार महिला सरपंच छवि राजावत
रोजाना की तरह आफिस से निकलने से पहले फोन की घंटी बजने लगी। देखा तो छवि का फोन था। उनसे मिलने के लिए जब एक सप्ताह पहले फोन किया  तो वह बाहर जाने की तैयारी में व्यस्त थी। बोली, वापस आकर मिलती हूं। दरअसल तिरूपति सिटी चेंबर की ओर से महिला सशक्तिकरण प्रयासों के लिए छवि राजावत को उगाधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनके घर पंहुचकर बातचीत का जो सिलसिला शुरू हुआ तो ढाई घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला। बातचीत के दौरान उनकी मां हर्ष चैहान भी साथ थी। गांव की चैपाल पर बैठी किसी महिला सरपंच की आपकी कल्पना से इतर है छवि राजावत। टोंक जिले में मालपुरा का एक छोटा सा गांव है सोडा। इस छोटे और अनजाने से गांव में मात्र ढाई महीने पहले सरपंच बनी छवि राजावत अन्य महिला सरपंचों से कई मायनों में वाकई अलग है। जब मुझसे मिली तो पहली नजर में मुझे कई संदेह हुए पर धीरे-धीरे बात करते हुए सारी धुंध छंट गई, अपने गांव और गांव की बुनियादी समस्याओं को लेकर जानकारी, समझ और संवेदना तीनांे के स्तर पर छवि को बहुत सजग और सक्रिय पाया। चैपाल और ग्राम सभाओं मंे चटख रंग के पारंपरिक पहनावे लहंगा, ओढ़नी पहने बैठी महिला सरपंच की जगह आप पाते हैं जींस टाप पहने आधुनिक पहनावे और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली एक माॅडर्न सरपंच। लेकिन यह पहनावा और भाषा उनके और गांववासियों के बीच संवाद में कभी बाधा नहीं बना।

वह कहती है गांव में होने के बावजूद मेरे पहनावे ने मेरे लिए मुश्किल खड़ी नहीं की क्योंकि मैं इस गावं की बेटी हूं। हां, अगर मैं यहां की बहू होती तो बात कुछ और हो सकती थी तब मुझे अपने कपड़ों पर ध्यान देना पड़ता। उच्च शिक्षित छवि ने एमबीए करने के बाद टाइम्स आफ इंडिया और एअरटेल जैसी कंपनियों में काम किया। बाद में अपने परिवार के होटल व्यवसाय में मां को मदद की। जयपुर में उनका अपना हाॅर्स राइडिंग स्कूल है जहां वे बच्चों को घुड़सवारी सिखाती है। छवि बताती है, सरपंच बनने के बाद अब इन सबके लिए समय कम ही मिल पाता है। गांव में होती हूं तो रोजाना सुबह सात बजे से गांव वालों से मुलाकात और तालाब पर खुदाई के कामों के बीच कब समय बीत जाता है, पता ही नहीं चलता।

ख्वाब छोटा सा
पानी की कमी से जूझ रहे गांववासियों को पीने का पानी मुहैया कराना उनकी पहली प्राथमिकता है और इस दिशा में वे सार्थक प्रयास करती नजर आती है। गांव के रीते पड़े तालाब को लेकर परेशान छवि का पहला प्रयास है कि कैसे भी करके मानसून से पहले उसकी खुदाई पूरी करा ली जाए ताकि बारिश का पानी सहेजा जा सके। करीब डेढ़ सौ बीघा में फैला तालाब मिट्टी भरने की वजह से समतल हो चुका है। हैरानी की बात है कि इसके लिए यह युवा सरपंच फावड़े और पराती लेकर खुद मैदान में उतर आई है। उनके हौसले गांव की महिलाओं को प्रेरित करते हैं, वे उनका साथ देने के लिए घर से निकल श्रमदान के लिए आगे आई है।

मां हर्ष कंवर बताती है, बचपन से ही जुझारू रही है छवि। हम नहीं चाहते थे कि घर में उपलब्ध संभ्रांत माहौल छवि को स्पेशल होने का एहसास कराए। हम चाहते थे कि दूसरे आम बच्चों की तरह यह भी साधारण माहौल में ही बड़ी हो। छवि बताती है, तालाब की क्षमता काफी ज्यादा है और बारिश से पहले यह काम हो जाए तो दो साल तक न सिर्फ ग्राम सोडा बल्कि आस पास के गांवों को भी पानी की कभी कमी नहीं होगी। बस इसी लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में प्रयासरत है छवि। हमें दुआ करनी चाहिए की उनका नेक ख्वाब पूरा हो जाए।

कहां से कहां तक

छवि ने चित्तूर आंध्र्र प्रदेश के ऋषिवैली स्कूल से दसवीं तक पढ़ाई करने के बाद की पढ़ाई मेयो काॅलेज अजमेर से की इसके बाद दिल्ली के लेडी श्रीराम काॅलेज से स्नातक और फिर पुणे से एमबीए करने के बाद पहली नौकरी टाइम्स आॅफ इंडिया में की। शहर के सभ्रांत और अभिजात्य माहौल से गांव तक पंहुचने का छवि का सफर काफी रोमांचक रहा है। वे कहती है, गांव से पीढि़यों का नाता होने के कारण मेरा खास जुड़ाव रहा हैं उनके परदादा और फिर दादा यहां के सरपंच रह चुके हैं। अब मैं सरपंच बन गई हूं इसलिए काम के सिलसिले में ज्यादा समय यहीं बीतता है। शहर की आदतें मुझे परेशान नहीं करती क्योंकि बचपन में चित्तूर में ऐसा माहौल मिला जहां कोई विशेष सुविधाएं नहीं थी। बर्तन मांजना, झाड़ू पोंछा, कपड़े धोना आदि तक सारे काम खुद करने होते थे। आत्मनिर्भर बनने का पहला पाठ वहीं से सीखा, आज भी यदि मुझे टाॅयलेट साफ करने को कहे तो मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी।

गांव वालों का खास स्नेह है छवि पर, वे उन्हें प्यार से बाई सा कहकर संबोधित करते है। इस बार महिला सीट होने की वजह से गांव वाले पीछे पड़ गए। उनका विशेष आग्रह था कि मैं सरपंच बनूं। अब मेरा फर्ज बनता है कि उनकी तकलीफों को समझूं और दूर करूं। गांव में पीने के पानी के लिए बना एक तालाब और करीब दस नाडि़यां है लेकिन देखरेख के अभाव में ये दम तोड़ चुके हैं। हालात यह है कि तालाब के आसपास के मीठे पानी के कुंए भी अब सूख चुके हैं, मजबूरी में लोगो को फ्लोराइडवाला और खारा पानी पीना पड़ रहा है। सीमित संसाधन और आर्थिक समस्याएं सामने है। बारिश नजदीक है इसलिए इस समय भी सीमित में 75 बीघा भराव क्षेत्र की ही खुदाई हो जाएगी। काम करने से ही होगा, और प्रयासों में मैं कोई कमी नहीं रखना चाहती।

मंजिलें दूर है अभी

पहली बार जब वार्ड पंचों की मीटिंग हुई तो सातों महिला वार्ड पंचों की जगह उनके पति आ गए। मैंने पूछा तो कहने लगे हम हैं ना। मैं हैरान हुई फिर उन्हें समझाया कि यहां आपकी नहीं उनकी जरूरत है, जाइए उन्हें भेजिए। शुरू शुरू में मीटिंग में कई बार देर हो जाने पर उनमें से कई के पति फोन करते थे कि बाईसा मेरी लुगाई को भेजो, खाना बनाना है देर हो रही है। लेकिन अब स्थिति बदल रही है, वे ही लोग कहते सुनाई पड़ते हैं कि घर की चिंता मत करना मैं संभाल लूंगा। मात्र ढाई महीने में गांव की स्थिति और सोच में बदलाव की आहट आ रही है। कहना होगा कि युवा सरपंच सही मायनों में अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ाती नजर आ रही है।

Pride of Chhattisgarh village-छत्तीसगढ़ के गौरव ग्राम

पंचायत की मुस्कान ग्रामीण विकास पर केन्द्रित पत्रिका है और विकास गाथा इस पत्रिका का एक नियमित स्तंभ है। इस स्तंभ के अंतर्गत हम विकास की कहानी बतायेंगे जो चाहे देश के किसी भी कोने का हो, किसी भी ग्राम पंचायत का हो अथवा व्यक्ति विशेष का हो। हो सकता है विकास गाथा में अगला नंबर आपके ग्राम पंचायत का हो, आपका हो। विकास गाथा स्तंभ के लिए तुरंत फोन करें - 07489405373

छत्तीसगढ़ की महान विभूतियों और महापुरूषों की जन्मभूमि और कर्मभूमि तथा अपने ऐतिहासिक, पुरातात्विक और प्राकृतिक सौंदर्य के रूप में सुप्रसिद्ध ग्रामों के संपूर्ण विकास के लिए राज्य सरकार द्वारा ‘ग्राम गौरव’ योजना संचालित की जा रही है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा आदर्श स्वरूप में इन ग्रामों के विकास के लिए वर्तमान में 73 गांव चिन्हांकित किए गए है। इन ग्रामों में शिक्षा, स्वास्थय, कृषि, बिजली, पेयजल सहित अन्य मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने के लिए शासन द्वारा 49 करोड़ 86 लाख रूपए की राशि से एक हजार 898 कार्य मंजूर किए गए है। इनमें से अब तक लगभग पांच सौ कार्य पूर्ण कर लिए गए है।

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा महान विभूतियों की जन्म स्थली वाले गांवों के विकास के लिए ‘छत्तीसगढ़ गौरव’ योजना और पर्यटन तथा पुरातात्विक महत्व के गांवों के विकास के लिए ‘हमारा छत्तीसगढ़’ योजना शुरू की गई थी। दोनों योजनाओं को वर्ष 2007-08 में एकीकृत कर ‘ग्राम गौरव’ योजना के नाम से इन ग्रामों को आदर्श ग्राम के रूप में विकसित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ गौरव योजना के तहत महान विभूतियों की जन्म और कर्मस्थली गांवों के समग्र विकास के लिए 23 करोड़ 80 लाख रूपए की लागत से 852 कार्य स्वीकृत किए गए है। इनमें से 276 कार्य पूर्ण हो चुके है। निर्माण कार्यो पर 13 करोड़ 18 लाख रूपए खर्च किए जा चुके है। हमारा छत्तीसगढ़ योजना के तहत शामिल गांव में 26 करोड़ से अधिक राशि के एक हजार से अधिक कार्य मंजूर किए गए है। प्रत्येक गांव में पर्यटकों के लिए बुनियादी सुविधाओं की दृष्टि से अनेक विकास के कार्य कराए जा रहे है। अब तक 222 निर्माण कार्य पूर्ण हो चुके है। जिन पर 12 करोड़ 97 लाख रूपए खर्च किए गए है। योजना के तहत चयनित गांवों में दुर्ग जिले के विकासखण्ड बालोद का गांव लिमोरा सन् 1952 में स्वतंत्र भारत में दुर्ग जिले की प्रथम महिला विधायक बनने का गौरव प्राप्त करने वाली श्रीमती डारन बाई गोडि़न का गांव है। इस गांव में सन् 1930 में तीस महान सपूतों ने आजादी की लड़ाई में भाग लिया था। इसी जिले के विकासखण्ड नवागढ़ छत्तीसगढ़ के महान सपूत स्व. पंडित भागवत प्रसाद उपाध्याय की जन्म भूमि और कर्मभूमि है। दुर्ग जिले का बोड़ेगांव प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दाउ उदय प्रसाद उदय की जन्म भूमि है। विकासखण्ड गुण्डरदेही का गांव भरदाकला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय उम्मेद सिंह कलिहारी की कर्मभूमि है। विकासखण्ड डौण्डी लौहारा का गांव सोरर साहसिक एवं संपूर्ण कलाओं में निपुण डड़सेना (कलार) समाज की अधिष्ठात्री देवी बहादुर कलारिन का जन्म स्थान है। गुण्डरदेही विकासखण्ड का गांव पिरीद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वग्रीय दाउ ढाल सिंह दिल्लीवार की जन्म भूमि है। बालोद विकासखण्ड का गांव निपानी स्वतंत्रता सग्राम सेनानी और पूर्व सांसद स्व. चंदूलाल चन्द्राकर की जन्म स्थली है।

जांजगीर चांपा जिले में विकासखण्ड जैजैपुर का गांव ठठारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर बुद्धेश्वर सिंह की जन्म स्थली है, बलौदा विकासखण्ड का गांव पोंच स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लक्ष्मीनारायण अग्रवाल की जन्म स्थली है। विकासखण्ड नवागढ़ का गांव अवरीद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. पंडित योगनिधि शास्त्री की जन्म स्थली है, इसी विकासखण्ड का गांव सेमरा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. ठाकुर राजेश्वर सिंह एवं स्वर्गीय ठाकुर कपिलेश्वर सिंह और ग्राम गौद छत्तीसगढ़ के प्रथम रहस कलाकार स्व. ठाकुर दादू सिंह की जन्म स्थली है। विकासखण्ड अकलतरा का गांव खटौला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. ठाकुर छेदीलाल बैरीस्टर की जन्म स्थली है। इसी विकासखण्ड का गांव पौना छत्तीसगढ़ के प्रथम कवि स्व. कपिलनाथ कश्यप एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. महेश चतुर्वेदी की जन्म स्थली है। विकासखण्ड बम्हनीडीह का गांव अफरीद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. वेदान्त केशरी की जन्मस्थली है। विकासखण्ड डभरा का गांव बालपुर प्रसिद्ध साहित्यकार स्व. मुकुटधर पाण्डेय की जन्मस्थली है। विकासखण्ड पामगढ़ का गांव नंदेली स्व. पंडित पचकौड़ प्रसाद पाण्डेय की जन्म स्थली है। रायपुर जिले में विकासखण्ड धरसींवा का गांव पथरी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डा. खूबचंद बघेल और भाटापारा विकासखण्ड का गांव तरेंगा दाउ कल्याण सिंह की जन्मभूमि है।

सरगुजा जिले में विकासखण्ड प्रतापपुर का गांव गोविन्दपुर माता राजमोहनी देवी की कर्मस्थली और ओड़गी विकासखण्ड का गांव कुदरगढ़ राजा बालंद की कर्मस्थली है। उत्तर बस्तर (कांकेर) जिले में विकासखण्ड दुर्गुकोन्दल का गांव सुरूगदोह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इन्दरू केंवट की जन्म स्थली है। छत्तीसगढ़ गौरव योजना में दक्षिण बस्तर (दंतेवाड़ा) जिले के ग्राम कुटरू, रायपुर जिले के विकासखण्ड धरसींवा के पथरी और बरबंदा, विकासखण्ड तिल्दा के मुर्रा, विकासखण्ड आरंग के चंद्रखुरी, विकासखण्ड भाटापारा के तरेंगा, राजनांदगांव जिले में विकासखण्ड राजनांदगांव के भर्रेगांव, विकासखण्ड डोंगरगढ़ के पारागांव खुर्द और सेम्हरा दैहान, धमतरी जिले के विकासखण्ड धमतरी के कन्डेल और नवागांव (कन्डेल), विकासखण्ड मगरलोड के मेघा और चन्द्रसुर शामिल है। महासमुंद जिले में विकासखण्ड बागबाहरा के ग्राम तमोरा, विकासखण्ड महासमुंद के भोरिंग, विकासखण्ड पिथौरा के बुन्देली, कबीरधाम जिले के विकासखण्ड कवर्धा के चचेड़ी और झिरौना, दुर्ग जिले में विकासखण्ड बालाद के निपानी और लिमोरा, विकासखण्ड गुण्डरदेही के पीरीद और भरदाकला, विकासखण्ड दुर्ग के बोड़ेगांव, विकासखण्ड नवागढ़ के तेन्दुआ, विकासखण्ड डौण्डी लोहारा के कोटेरा और बघमार तथा विकासखण्ड गुरूर के सोरर को शामिल किया गया है। बस्तर जिले के विकासखण्ड जगदलपुर के गांव नेतानार, उत्तर बस्तर (कांकेर) जिले के विकासखण्ड दुर्गुकोंदल के सुरूमदोह, बिलासपुर जिले के विकासखण्ड मुंगेली के पंडरभट्टा और लिम्हा भी इस योजना में शामिल किए गए है। जशपुर जिले में विकासखण्ड जशपुर के आरा, फांसी अम्बा, विकासखण्ड मनोरा के सोगड़ा, विकासखण्ड कुनकुरी के केराडीह, विकासखण्ड फरसाबहार के कोतेबीरा, विकासखण्ड कांसाबेल के तिलंगा, विकासखण्ड बगीचा के हर्राडीपा, गायबुड़ा और विकासखण्ड पत्थलगांव के तमता भी शामिल किए गए है। सरगुजा जिले के विकासखण्ड प्रतापपुर के गोविंदपुर और विकासखंड ओड़गी के कुदरगढ़, रायगढ़ जिले में विकासखण्ड लैलूंगा के गहिरा, विकासखण्ड रायगढ़ के महापल्ली, विकासखण्ड बरमकेला के बड़ेनवापारा, विकासखण्ड पुसौर के केनसरा और पड़ीगांव, कोरबा जिले के विकासखण्ड कोरबा के कुदुरमाल, जांजगीर चांपा जिले के विकासखण्ड अकलतरा के पौना, खटौला और अफरीद, विकासखण्ड नवागढ़ के सेमरा, गौर, उदयभाठा, अवरीद और चोरभट्टी, विकासखण्ड पामगढ़ के नंदेली, विकासखण्ड डभरा के बालपुर, विकासखण्ड जैजैपुर के ठठारी और विकासखण्ड बलौदा के पोंच भी इस योजना में शामिल है।

‘हमारा छत्तीसगढ़’ योजना राज्य सरकार के पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग द्वारा चलायी जा रही है। इस योजना के तहत पर्यटन महत्व के स्थलों को शामिल किया गया है। योजना के तहत शामिल गांवों में दुर्ग जिले के विकासखण्ड दुर्ग के ग्राम बासिन (लिमाही) में देवी का प्रसिद्ध मंदिर है जहां प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में दर्शनार्थी आते है। यहां क्वांर और चैत्र नवरात्रि में मेला लगता है। इसी विकासखण्ड के ग्राम कोडि़या में विशाल स्वयं भू शिवलिंग और मंदिर है। दुर्ग जिले के ही विकासखण्ड धमधा के ग्राम अरसी में प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग है यहां महाशिवरात्रि में मेला लगता है। यहां पर एक अद्भुत तालाब भी है। मान्यता है कि इसके जल के छिड़काव से फसल रोगमुक्त हो जाती है। इसी विकासखण्ड का ग्राम पथरिया शिवनाथ नदी के तट पर बसा है। ग्राम में प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ बगदाई मंदिर है, जहां क्वांर और चैत्र नवरात्रि में ज्योति कलश स्थापित किए जाते है। ग्राम तितुरघाट में विशाल चतुर्भुजी मंदिर है। ग्राम तरकोनी में मां कारोकन्या मंदिर और भारत के सबसे उंचे शिवलिंग होने का दावा किया जाता है। ग्राम रौता में विशाल शिवलिंग है जहां मेला लगता है। जिला कबीरधाम के विकासखण्ड बोड़ला के ग्राम बहेराखार का जलाशय पर्यटन स्थल है। इसे पर्यटन माडल के रूप में विकसित करने के लिए यहां भवन, मंदिर और उद्यान का निर्माण तथा विद्युतीकरण, डामरीकरण और सौंदर्यीकरण किया जाएगा। जिला जांजगीर चांपा के विकासखण्ड जैजैपुर का ग्राम कैथा बाबा बिरतिया की नगरी है। इस ऐतिहासिक स्थान पर प्रतिवर्ष सैकड़ो व्यक्तियों का इलाज होता है। इसी विकासखण्ड का ग्राम देवरघटा भी लोगों की आस्था का केन्द्र है। हमारा छत्तीसगढ़ के तहत प्राकृतिक सौन्दर्य और ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल के रूप में चयनित ग्राम तातापानी सरगुजा जिले मं स्थित है, यहां प्राकृतिक रूप से गरम पानी का स्त्रोत है। यहां विश्रामगृह निर्माण के समय टीले की खुदाई मंे मूर्तियां मिली थी। इसी जिले के विकासखण्ड बलरामपुर के ग्राम पवईफाल में मनोहारी जलप्रपात है। वनान नदी अपने उद्गम स्थल लहसुनपाट से सीतारामपुरपाट होते हुए बुद्धूडीह में पवईफाल के रूप में मनोरम जल प्रपात बनाती है। यह जल प्रपात 80 फीट उंचाई से गिरता है। विकासखण्ड वाड्रफनगर के ग्राम बसराजकुंवर में अलका के आश्रित ग्राम मानपुर में देवस्थल बसराजकुंवर लोगों की आस्था का केन्द्र है। विकासखण्ड रामानुजगंज का ग्राम पल्टनघाट पर्यटन स्थल है। यहां प्रतिवर्ष एक जनवरी से 14 जनवरी तक मेला लगता है। यह गांव रामानुजगंज से वाड्रफनगर सड़क मार्ग पर 4 किलोमीटर दूरी पर कन्हार नदी के पास स्थित है।

इस योजना के तहत चयनित गांवों में दक्षिण बस्तर (दंतेवाड़ा) जिले के विकासखण्ड दंतेवाड़ा के गांव पोदुम, विकासखण्ड कुआकोण्डा के फुलपाड, विकासखण्ड कटेकल्याण के बड़ेबेड़गा, विकासखण्ड भोपालपटनम के पोषणपल्ली, विकासखण्ड सुकमा के रामाराम, विकासखण्ड कोंटा के इंजरम और बीजापुर जिले का विकासखण्ड मुख्यालय ईटपाल शामिल है। रायपुर जिले के विकासखण्ड धरसींवा के गांव पथरी, आरंग के चन्द्रखुरी, गुरूद्वार और भण्डारपुरी को शामिल किया गया है। राजनांदगांव जिले के विकासखण्ड छुरिया के गांव साकरबहरा (दंवरी), धमतरी जिले के विकासखण्ड नगरी के सिहावा, मुकुन्दपुर और विकासखण्ड धमतरी के रूद्री को भी इस योजना में शामिल किया गया है।

महासमुंद जिले के विकासखण्ड बागबहरा के खल्लारी, बसना के गढ़फलझर, कबीरधाम जिले के विकासखण्ड सहसपुर लोहारा के सिंघनगढ़, जोगी गुफा, विकासखण्ड बोडला के खरहरा (महादेवघाट), चरणतीरथ, विकासखण्ड पंडरिया के बम्हनदेई (रचीपारा), कामथी, विकासखण्ड कवर्धा के आंधी (शिवघाट) का चयन भी इस योना के अंतर्गत किया गया है। दुर्ग जिले मंे विकासखण्ड गुरूर के सियादेही, विकासखण्ड गुण्डरदेही के चैरल, विकासखण्ड डौण्डी के बेलोदा, कोटागांव, महामाया, विकासखण्ड बेरला के वेटुवा, मौलीभाटा, नेवनारा चंडी, कारोकन्या और नदी किनारे बसे गांव कंडरका, इसी जिले के विकासखण्ड धमधा के अकोला, शिवकोकडी, सगनी, देउरकोना, विकासखण्ड दुर्ग के भरदा, विकासखण्ड पाटन के कौही, विकासखण्ड डोण्डी लोहरा के जामडी (पाटेश्वर), विकासखण्ड बालोद के रानीमैया (डौण्डी) और परेगुड़ा भोलापठार भी योजना में शामिल है। बस्तर जिले में विकासखण्ड फरसगांव के भोगापाल, विकासखण्ड बस्तर के नारायणपाल, विकासखण्ड केशकाल के गढ़धनोरा, उत्तर बस्तर (कांकेर) जिले के विकासखण्ड दुर्गुकोन्दुल के सोना देही और डांगरा, विकासखण्ड भानुप्रतापपुर के बांसला, कोरर, विकासखण्ड कोयलीबेड़ा के परतापुर, सितरम, विकासखण्ड अंतागढ़ के नागरबेड़ा का भी चयन किया गया है। योजना में बिलासपुर जिले के विकासखण्ड बिल्हा के ग्राम ताला, मोहभट्ठा, मटियारी, विकासखण्ड पेण्ड्रा के सोनगुडा, तखतपुर के बेलपान, विकासखण्ड पथरिया के मदकू, जशपुर जिले के विकासखण्ड जशपुर के बेलपहाड़, रानीदाह, विकासखण्ड मनोरा के नक्टीरानी (खम्हली), भरगढ़ा, विकासखण्ड दुलदुला के रामरेखाधाम (बंकुरकेला), शदराधाम, विकासखण्ड कुनकुरी के वेने, दमगड़ा, विकासखण्ड फरसगांव के कोतेबिरा, उपरकछार, विकासखण्ड कांसाबेल के हथगड़ा, कोड़लिया, विकासखण्ड बगीचा के खुडि़यारानी, सारूडीह, देनगरी, विकासखण्ड पत्थलगांव के बड़गांव वी और चटुराकन्हार को शामिल किया गया है। सरगुजा जिले के विकासखण्ड शंकरगढ़ के डीपाडीहकला, रायगढ़ जिले के विकासखण्ड बरमकेला के पुजारीपाली, विकासखण्ड तमनार के तराईमाल, विकासखण्ड लैलूंगा के कुर्रा, विकासखण्ड खरसिया के सिंघनपुर, कोरबा जिले के विकासखण्ड कोरबा के धनरास, विकासखण्ड पोड़ी उपरोड़ा का भातिन, विकासखण्ड पाली के नरसिंगगंगा और विकासखण्ड करतला के मड़वारानी गांव को भी योजना में शामिल किया गया है। जांजगीर चांपा जिले के विकासखण्ड नवागढ़ के पीथमपुर, केरा, बम्हनीडीह के लखुरी, सरहरगढ़, विकासखण्ड सक्ती के दमउदहरा, ऋषभतीर्थ, विकासखण्ड अकलतरा के नरियरा, कोटगढ़, विकासखण्ड बलौदा के मदनपुरगढ़, खिसोरा, विकासखण्ड पामगढ़ के कोनारगढ़, देवरघटा, विकासखण्ड जैजैपुर के हसौद, कोरिया जिले के विकासखण्ड मनेन्द्रगढ़ के विहारपुर और विकासखण्ड भरतपुर के गांव हरचैका भी इस योजना में शामिल है।