मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

सुख दुख का साथी जान

निर्विरोध युवा हाथों में सौंपी कमान

राजेश सिंह क्षत्री

आदिवासी युवक अशोक को उसके निःश्छल व्यवहार और सबके साथ सहजता से घुल मिल जाने की प्रवृत्ति के चलते गांव वालों ने निर्विरोध सरपंच के पद पर बिठा दिया तो वहीं सभी 16 वार्डो में पंच का चयन भी निर्विरोध हुआ वहीं जनपद सदस्य के लिए गांव से एकमात्र प्रत्याशी जोधराम बिंझवार को ही खड़ा किया गया और उसे ही वोट देने की बातें कही गई।
जांजगीर-चांपा जिले के बलौदा विकासखण्ड के अंतर्गत ग्राम केराकछार में सरपंच और पंच के पद पर निर्विरोध निर्वाचन होने की जानकारी होने के बाद जब पंचायत की मुस्कान की टीम आदिवासी बाहुल्य इस गांव में पंहुची। हसदेव नदी के किनारे बसे और पड़ोसी कोरबा जिले से लगे इस गांव में पंहुचने पर गांव के प्रारंभ में ही एक दुकान के किनारे रूककर हमने नवनिर्वाचित सरपंच के बारे में जानकारी ली। किराना दुकान के सामने खड़े एक नवमी कक्षा के विद्यार्थी ने हमें अपने युवा सरपंच की जानकारी देते हुए बताया कि अच्छा अशोक, ये सामने वाला घर ही तो अशोक का है। गांव के युवा सरपंच के मिट्टी के बने घर और बाड़ी को हमने पूरा छान मारा लेकिन अशोक क्या वहां कोई भी नहीं मिला। इस पर हमारी टीम बाहर निकलकर उस बालक से फिर मुखातिब होते हुए उससे अशोक के बारे में जानकारी लेने के लिए जुट गया। कोरबा जिले के कनकी गांव के स्कूल में हाईस्कूल में पढ़ने वाला पन्द्रह वर्षीय वह बालक भी हमें अशोक का नाम ले उसे ढूंढने में उसी तरह से मदद करने लगा जैसे वह उसी का हमउम्र कोई मित्र हो। हम आवास में बने अशोक के दूसरे घर भी गए लेकिन वहां मौजूद अशोक के भोले-भाले परिजन भी हमें कोई खास जानकारी नहीं दे सके। इसी बीच पता चला कि गांव के बाहर मैदान में कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं। अशोक के वहां मौजूद होने का अनुमान लगाते हुए हम बच्चों के बीच पंहुच गए, जहां क्रिकेट का आनंद उठाते ग्राम पंचायत केराकछार का युवा सरपंच हमें मिल ही गया। ग्राम पंचायत केराकछार भी पहली बार अलग से ग्राम पंचायत बना है। इससे पहले यह गांव ग्राम गतवा का आश्रित ग्राम था। केराकछार में कुल तीन मोहल्ले दमखांचा, केराकछार और पतरापाली है जिसके सभी 14 वार्डो पर पंच और गांव का सरपंच अशोक कुमार बिंझवार निर्विरोध चुने गए हैं। इतना ही नहीं इस गांव में जनपद पंचायत के लिए भी गांव से एक नाम जोधराम बिंझवार का आगे आया है। ग्रामीणों का कहना है कि उनके गांव के लोग बीडीसी के लिए जोधराम बिंझवार को ही वोट देंगें बाकि वो हारते है या जीतते हैं वह दूसरे प्रत्याशियों और दूसरे गांव में मिले उसे वोटों पर निर्भर करेगी। एक ग्रामीण ने बताया कि जब केराकछार गतवा पंचायत का अधिनस्थ ग्राम था तब भी यहां के लोग एकराय होकर किसी एक का नाम ही आगे बढ़ाते थे लेकिन ग्राम गतवा से भी लोगों के चुनावी मैदान में उतरने की वजह से चुनाव की नौबत आती थी उसके बाद भी अधिकतर केराकछार का व्यक्ति ही चुनाव जीत जाता था क्योंकि यहां के मत किसी एक को ही पड़ते थे। जब पहली बार केराकछार अलग से ग्राम पंचायत के रूप में अस्तित्व में आया तो गांव वालों ने एक बार फिर से बैठक का सहारा लिया और पंच-सरपंच सभी पर एकराय से अपने उम्मीद्वार तय कर दिए। यही वजह रही कि यहां से किसी भी दूसरे दावेदार ने फार्म ही जमा नहीं किए और पूरी पंचायत निर्विरोध चुनी गई। निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति में भी आखिर आप ही क्यों जबकि आदिवासी बाहुल्य इस गांव में दावेदार तो अनेक रहे होंगे के सवाल पर सरल और सहज शब्दों में अशोक बताते हैं कि उनका सबके साथ अच्छा व्यवहार रहा है वहीं वह सभी दावेदारों में सबसे युवा भी थे, शायद यही वजह रही कि लोगों ने उन पर ही अपना विश्वास जताया।

जुझारूपन देख मिला आठ का साथ

और बन गयी सरपंच

राजेश सिंह क्षत्री

आरक्षण के बाद झपेली में सरपंच का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया था जबकि वहां पूरे पंचायत में अनुसूचित जाति का एक भी मतदाता नहीं था, ऐसी स्थिति में गांव के युवा जवाहर कश्यप ने शासन-प्रशासन को उसकी गलती का अहसास कराने का बीड़ा उठाया। जगदीश अपनी कोशिश में सफल भी हो गए और सरपंच का पद सामान्य महिला के लिए आरक्षित कर दिया गया। ऐसे में जब जगदीश ने सरपंच पद के लिए अपनी भाभी पुष्पांजलि कश्यप का नाम आगे बढ़ाया तो सरपंच के लिए नामांकन जमा करने वाले शेष सभी आठ प्रत्याशियों ने अपना नाम वापस ले लिया तो वहीं सभी पंचों का चयन भी निर्विरोध संपन्न हो गया।
जांजगीर-चांपा जिले के बलौदा विकासखण्ड का ग्राम पंचायत झपेली। ब्लाक मुख्यालय बलौदा से बमुश्किल दो किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव में अभी भी विकास की असीम संभावनाएं हैं। गांव वालों की माने तो जावलपुर जैसे बड़े गांव का आश्रित ग्राम होने का खामियाजा इस गांव को भुगतना पड़ा क्योंकि इससे पहले के चुनाव में बड़ा गांव होने की वजह से जावलपुर का व्यक्ति ही सरपंच चुना जाता था। जाहिर सी बात है उसकी प्राथमिकता भी खुद का गांव ही होता था। ऐसे में झपेली विकास की राह में पिछड़ता चला गया। चुनाव से पहले जब पंचायतों का फिर से परिसीमन किया गया झपेली और बेलंदियाडीह को जावलपुर से अलग करते हुए झपेली के नाम से ग्राम पंचायत का गठन किया गया। झपेली के एक ग्रामीण व्यंग्यात्मक लहजे में कहते हैं कि ग्राम जावलपुर में तो पहले से ही काफी विकास हो गया था उसके बाद भी जावलपुर को सांसद ने आदर्श ग्राम बनाने के लिए गोद ले लिया। ऐसे में झपेली का क्या होता? अच्छा हुआ अबकि बार झपेली अलग से पंचायत बन गया।
कहते हैं कि खुशियां अपने साथ परेशानियां भी साथ लेकर आती है। कुछ ऐसा ही ग्राम पंचायत झपेली के साथ भी हुआ। पंचायतों के आरक्षण के बाद ग्राम पंचायत झपेली को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। ग्रामीणों के लिए यह खबर किसी सदमें से कम नहीं रहा क्योंकि उनके अनुसार उनके ग्राम झपेली और आश्रित ग्राम बेलंदियाडीह में अनुसूचित जाति वर्ग के एक भी सदस्य निवास नहीं करते हैं। लोगों को चिंता होने लगी कि क्या ग्राम पंचायत झपेली एक बार फिर से विकास से मरहूम रह जाएगा। ऐसे में गांव के युवा जवाहर कश्यप ने शासन-प्रशासन को उनकी गलती से अवगत कराने का बीड़ा उठाया। जवाहर ने जनपद पंचायत से लेकर जिला पंचायत और जिले के मुखिया से इस संबंध में गुहार लगाई तो शासन ने भी अनुसूचित जाति वर्ग के दर्जन भर मतदाताओं के नाम सामने कर दिए जिनकी वजह से झपेली को अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित किया गया था। ऐसे में उन दर्जन भर लोगों की तलाश प्रारंभ हो गई जो कि अनुसूचित जाति वर्ग के थे और जिसे गांव वाले भी नहीं जानते थे कि वह उनके गांव के निवासी है। गांव के एक-एक मतदाता के भौतिक सत्यापन करने के बाद जब इस बात की पुष्टि हो गई कि वो सभी ग्राम झपेली और बेलंदियाडीह के निवासी नहीं है तब उसके बाद फिर ग्राम जावलपुर की मतदाता सूची को खंगाला गया क्योंकि तब तक ग्राम झपेली जावलपुर का आश्रित ग्राम था। आखिरकार ग्रामीणों की मेहनत रंग लाई और इस बात का पता चल ही गया कि शासन ने अनुसूचित जाति के जिन मतदाताओं को ग्राम पंचायत झपेली का मानते हुए झपेली को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया था वो मतदाता मूल रूप से ग्राम जावलपुर के वार्ड नं. 7 के निवासी हैं। शासन ने भी अपनी गलती स्वीकार की और ग्राम पंचायत झपेली का नए सिरे से आरक्षण करते हएु ठीक चुनाव से पहले इसे सामान्य महिला के लिए आरक्षित किया।
सरपंच का पद सामान्य महिला के लिए आरक्षित होने के साथ ही झपेली में इस पद के लिए आठ दावेदार सामने आ गए तो वहीं आश्रित ग्राम बेलंदियाडीह से भी एक दावेदार मैदान में उतर आया। जब सभी को यह लगने लगा कि पहली बार झपेली पंचायत के लिए होने वाले चुनाव में घमासान मचने वाला है कि इसी बीच ग्राम 9 जनवरी को झपेली के सरपंच पद के सभी आठ दावेदार पंचरेखा कश्यप, रजनी कश्यप, बृहस्पति सांडिल्य, कल्याणी कश्यप, रेखा कश्यप, सरस्वती बाई, कुसुम बाई और पुष्पांजलि कश्यप गांव के एक खेत में इकट्ठे हुए तब आम सहमति बनाने की कोशिशें शुरू हुई। लोगों को लगा कि झपेली में आरक्षण विवाद को हल करने में जवाहर कश्यप की महत्वपूर्ण भूमिका रही और वह गांव के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। जवाहर कश्यप के घर से सरपंच पद के लिए उनकी भाभी पुष्पांजलि कश्यप चुनाव मैदान में उतरी थी इसलिए सभी ने एकराय होकर पुष्पांजलि कश्यप के समर्थन में अपना नाम वापस लेने की घोषणा की। झपेली में सरपंच पद के सभी आठ दावेदारों के द्वारा एकराय बनाने के बाद सभी बेलंदियाडीह से नौवे दावेदार के रूप में चुनावी समर में उतरे अरूणा बाई कोल से मिलने और अपनी राय से अवगत कराने बेलंदियाडीह पंहुचे। गांव के विकास के लिए अरूणा बाई कोल ने भी अपना नाम वापस लेने में सहमति जताई। सरपंच पद पर आम सहमति बनने के बाद सभी की निगाहें पंच पद पर टिक गई। बेलंडियाडीह के तीन वार्डो में पहले से ही निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति थी तो वहीं झपेली के तीन वार्ड में भी एक-एक प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे वहीं चार वार्डो में सीधे मुकाबले की स्थिति थी। ऐसे में 10 जनवरी को नाम वापसी के अंतिम दिन सरपंच पद के आठ और पंच पद के चार उम्मीद्वारों ने अपना नाम वापस ले लिया और पहली बार ग्राम पचंायत का दर्जा पाए झपेली में पुष्पांजलि कश्यप सरपंच और संतोष यादव, मुन्नी बाई, बृंदा बाई, सुरेन्द्र कुमार, बच्ची बाई, लक्ष्मीन कश्यप, राजकुमार कश्यप, मंगलू धनवार, फेकन बाई, कुमारीदास पंच के पद पर निर्विरोध निर्वाचित हुए।

चुनावी खर्च से बचने दावेदारों ने निकाली पर्ची

और बन गए सरपंच

राजेश सिंह क्षत्री

पिसौद में कुछ लोग चाहते थे कि अन्य गांव की तरह यहां भी चुनावी रंग जमाने के लिए सरपंच का चुनाव हो, इसलिए उन्होंने तीन लोगों को खड़ा भी करा दिया था लेकिन चुनावी खर्चे से बचने के लिए तीनों सामाजिक भाईयों ने लाटरी का सहारा लिया और एक का नाम निकलने के बाद शेष दो ने उसके समर्थन में अपने नाम वापस ले लिए।
जिला मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर बलौदा विकासखण्ड का ग्राम पंचायत पिसौद मौजूद है। आरक्षण के बाद यहां सरपंच का पद आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हो गया। ठेठ देहाती लहजे में बोलते हुए एक ग्रामीण ने बताया कि, इहां तीन हंडि़या के आदिवासी हे, उखरे आठ-दस घर हावय। सरपंच पद के लिए जब नामांकन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई तो गांव से हरि सिदार, राजकुमार मरावी और बद्री मरावी ने अपना नामांकन दाखिल किया। ग्राम पंचायत पिसौद के निर्विरोध निर्वाचित सरपंच हरि सिदार बताते हैं कि हम तीनों एक ही जाति गोंड़ जाति के हैं इस नाते आपस में हमारी रिश्तेदारी भी है। बद्री भैया और राजकुमार भैया मेरे से बड़े हैं इसलिए हमने आपस में चुनाव लड़कर पैसा खर्च करने से अच्छा एक साथ मिल बैठकर समझौता करने की सोची। नामांकन वापसी से पूर्व ही मैं, बद्री और राजकुमार एक साथ बैठे तथा इस बात पर सहमति बनी कि आपस में चिट निकालकर सरपंच का चयन किया जाए तथा शेष दो व्यक्ति उस व्यक्ति के समर्थन में अपना नामांकन वापस ले लेवें। तीनों सरपंच प्रत्याशी का कागज के एक-एक टुकड़े पर नाम लिखाा गया और जब एक पर्ची को खोला गया तो उसमें मेरा नाम निकला, उसके बाद बद्री भैया और राजकुमार भैया ने मेरे समर्थन में अपना नाम वापस ले लिया।
सरपंच पद के एक अन्य दावेदार बद्री मरावी बताते हैं कि अनुसूचित जनजाति के लिए सरपंच का पद आरक्षित होने के साथ ही उन्होंने चुनावी तैयारियां प्रारंभ कर दी थी। सरपंच बन वो भी गांव की सेवा करना चाहते थे लेकिन उन्होंने पहले से ही निर्विरोध निर्वाचन की मानसिकता बना ली थी। यही वजह है कि जब तीन लोग खड़े हुए तो आपस में पर्ची निकालकर निर्विरोध चयन का रास्ता निकाला गया। हम तीनों आखिरकार आपस में भाई-भाई ही तो हैं। ऐसा करने से आपस में एकता का संदेश जाता है। पिसौद के एक अन्य ग्रामीण ने बताया कि यहां के कुछ लोग चाहते थे कि अन्य गांव की तरह यहां भी चुनावी रंग जमे। इसके लिए जरूरी था कि सरपंच के पद पर एक से ज्यादा लोग चुनावी मैदान में हो इसीलिए तीन लोगों को खड़ा किया गया था लेकिन प्रत्याशियों के आगे उनकी एक नहीं चली और उन्होंने आपस में समझौता कर लिया। ग्राम पंचायत पिसौद में सरपंच के पद पर हरि सिदार के निर्विरोध निर्वाचित हो जाने पर गांव वाले चुनावी त्यौहार से भले ही वंचित हो गए लेकिन इसके एवज में सरकार की ओर से उन्हें पांच लाख की राशि प्राप्त होगी जिसे गांव के विकास में लगाया जा सकता है।

नारी शक्ति ने सुनाया फरमान

महमदपुर का पहला सरपंच तो निर्विरोध ही बनेगा

राजेश सिंह क्षत्री

बरगंवा के आश्रित ग्राम महमदपुर के ग्रामीणों को जैसे ही इस बात का पता लगा कि अब महमदपुर के नाम से अलग से ग्राम पंचायत का गठन होगा यहां कि चारों महिला स्वसहायता समूह की महिलाओं ने एक स्वर में अपनी राय बता दी कि लाटरी के बाद सरपंच का पद चाहे जिस भी वर्ग को मिले लेकिन ग्राम पंचायत महमदपुर का पहला सरपंच तो निर्विरोध ही चुना जाएगा। आंगनबाड़ी भवन के पास ग्रामीणों की कई दौर की बैठक के बाद दुलेशिया बाई चैहान को ग्राम पंचायत महमदपुर का निर्विरोध सरपंच चुन लिया गया वहीं जनपद सदस्य के पद पर ही गांव से एकमात्र प्रत्याशी के रूप में मालती कंवर के नाम पर मुहर लगा दी गई।
भक्तिन के बसाए गांव में बाजार लगने से भक्तिन बाजार के नाम से मशहूर अकलतरा विकासखंड का ग्राम पंचायत महमदपुर इससे पहले ग्राम पंचायत के आश्रित गांव के रूप में जाना जाता था, जहां 2015 में पहली बार महमदपुर ग्राम पंचायत के लिए चुनाव हुआ लेकिन यहां सरपंच पद के लिए चुनाव नहीं हुआ क्योंकि ग्रामीणों ने एक राय से यहां अनुसूचित जाति वर्ग की महिला दुलेशिया बाई चैहान को अपना सरपंच चुन लिया और सरपंच पद के लिए महमदपुर से एकमात्र प्रत्याशी के रूप में दुलेशिया बाई चैहान ने अपना नामांकन जमा किया और वो निर्विरोध सरपंच चुनी गई।
चार-पांच साल पहले तक महमदपुर को ‘‘दूपार्टी गांव’’ अर्थात ऐसे गांव के रूप में जाना जाता था जहां दो पार्टी रहती है तथा आए दिन झगड़े होते रहते हैं तथा छोटे-छोटे विवाद बड़ा रूप ले लेते हैं। ऐसे में जब गांव वालों को इस बात की जानकारी हुई कि महमदपुर को ग्राम पंचायत बरगंवा से अलग कर स्वतंत्र ग्राम पंचायत बनाया जा रहा है तब ग्रामीणों के मन में अपना अलग से पंचायत बनने की खुशी के साथ-साथ इस बात का भय भी था कि आगामी पंचायत चुनाव में क्या पता यहां का माहौल कैस होगा ? ऐसी स्थिति में गांव में मौजूद सभी चार महिला स्व सहायता समूह की महिलाएं आगे आई और उन्होंने एक स्वर में अपना फरमान सुना दिया कि इस गांव में किसी भी सूरत में सरपंच पद के लिए चुनाव की नौबत नहीं आनी चाहिए तथा सरपंच का पद चाहे जिस वर्ग के लिए भी आरक्षित हो, ग्राम पंचायत महमदपुर का पहला सरपंच तो निर्विरोध ही चुना जाएगा।
गांव की मालती कंवर बताती है कि महमदपुर में कुल चार स्वसहायता समूह है। वैभव लक्ष्मी स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष वह स्वयं मालती कंवर है, तो वहीं महामाया स्वसहायता समूह की अध्यक्ष रूपकुंवर कंवर, दुर्गा स्वसहायता समूह की अध्यक्ष ललिता यादव और गायत्री स्वसहायता समूह की अध्यक्ष मंदाकनी कंवर है। इन चार स्वसहायता समूह के अतिरिक्त गांव में एक और समिति है जिसे महामाया समिति के नाम से जानते हैं और जिसके प्रमुख मथुर सिंह गोंड़ है। महमदपुर में सरपंच के निर्विरोध निर्वाचन के लिए प्रारंभ में चारो स्वसहायता समूह की महिलाओं ने अपने स्तर पर पहल की तथा आपस में अपने बीच में निर्विरोध निर्वाचन पर एकराय बनाने का काम किया जिसके बाद महामाया समिति के बैनर तले आंगनबाड़ी के पास गांव के सभी पुरूष और महिलाओं की बैठक हुई जिसमें महिलाओं की राय का सम्मान करते हुए महमदपुर में निर्विरोध निर्वाचन पर मुहर लगाई गई।
गांव के बुजुर्ग खोलबहरा केंवट बताते हैं कि ग्राम पंचायत महमदपुर आदिवासी बाहुल्य गांव है तथा यहां गोंड़ और कंवर जनजाति के लोग ज्यादा है। महमदपुर में सरपंच का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गया। यहां उस वर्ग से एक ही परिवार के चार-पांच घर है। दुलेशिया बाई और उसकी देरानी यही उनके घर के पास ही रहती है तो वहीं अन्य परिवार बस्ती में दूसरे जगह रहते हैं। महमदपुर में निर्विरोध सरपंच के निर्वाचन में गांव की चारो महिला स्वसहायता समूह की महिलाओं की बड़ी भूमिका रही। उन्होंने ही इस बात की शुरूआत की थी जिसके बाद गांव में हुए कई दौर की बैठक में गांव के सम्मानित बड़े बुजुर्ग बसंत गौटिया, रमेश कुमार कैवत्र्य, विनय और अन्य बड़े बुजुर्गो ने इस मामले में सभी लोगों को एकजुट करने का काम किया। सभी को समझाया गया कि चुनाव होने से आपसी दुश्मनी बढ़ती है वहीं गांव के विकास में रूकावट पैदा होती है, जबकि निर्विरोध निर्वाचन से गांव में विकास तेज गति से होगा। निर्विरोध निर्वाचन के बाद गांव में जो भी विकास होगा उसे सभी मोहल्लों में, सभी वर्गो में समान रूप से बांटा जाएगा। जो भी पंचायत प्रतिनिधि निर्विरोध निर्वाचित होते हैं वह चुनाव जीतने के बाद निरंकुश न हो जाए इस बात का खास ख्याल रखना होगा तथा उन्हें बस्ती वालों के अनुसार ही चलना होगा तथा गांव के विकास को प्राथमिकता देनी होगी। गांव के एक अन्य बुजुर्ग बताते हैं कि दुलेशिया बाई के पति रायगढ़ में रहते हैं। गांव में अनुसूचित जाति वर्ग के जितने भी लोग हैं उसमें दुलेशिया बाई उन्हें सबसे ज्यादा योग्य लगी क्योंकि वह सभी लोगों को बराबर मान-सम्मान और आदर देती है इसलिए आरक्षण के बाद उसके नाम पर आम सहमति बनाने की कोशिश की गई।
ग्राम पंचायत महमदपुर की पहली सरपंच बनने वाली दुलेशिया बाई चैहान बताती है कि उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह कभी अपने गांव की सरपंच बन सकती है। गांव वालों ने उन्हें सरपंच बनाना चाहा तो उनके परिवार वालों ने गांव वालों की राय का सम्मान किया। वो सरपंच जरूर बन गई है लेकिन गांव का पूरा काम काज गांव-बस्ती वालों के कहे अनुसार ही कराया जाएगा। ग्राम पंचायत महमदपुर में सरपंच के अतिरिक्त पांच वार्डो के पंच मनहरण सिंह, बलराम सिंह, श्रीमती रूपकुंवर, रूखमणी और रमेश्वरी चैहान का भी निर्विरोध निर्वाचन हुआ है वहीं जनपद सदस्य के रूप में गांव से मालती कंवर का चयन किया गया है तथा वही इस गांव से बीडीसी के लिए एकमात्र प्रत्याशी है।

मां महामाया की अद्भूत मूर्ति है महमदपुर में

भक्तिन के बसाए हुए गांव में बाजार लगने से ग्राम महमदपुर भक्तिन बाजार के नाम से आस-पास के क्षेत्र में जाना जाता है। इस गांव में मां महामाया की एक काफी प्राचीन और अद्भूत मूर्ति है। महमदपुर के ग्रामीणों के अनुसार मां महामाया की ऐसी मूर्ति और कहीं अन्यत्र होने के बारे में उन्होंने कभी नहीं सुना। ग्रामीणों के अनुसार महामाया की यह मूर्ति छैमासी रात की बनी हुई है। मां महामाया की इस मूर्ति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां एक ही पत्थर से चार अलग-अलग दिशाओं में चार अलग-अलग देवी देवताओं की मूर्ति बनी हुई है जो कि भारतीय मुद्राओं में अंकित चार सिंहों की याद दिलाते हुए भी उससे इस मायने में अलग है कि वहां चारों दिशाओं में सिंह अंकित है तो यहां पूर्व में मां महामाया, पश्चिम में भैरव बाबा, उत्तर में कालीमां और दक्षिण में भगवान गणेश की प्रतिमा अंकित है। गांव में हर रविवार को बाजार बैठता है तो वहीं साल में एक बार रावत बाजार और चैत्र और क्वांर मास में नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

ग्रामीणों ने चुनाव की फिजूलखर्ची रोकी

खुद ही चुनाव करा निर्विरोध चुना सरपंच


राजेश सिंह क्षत्री



छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के बम्हनीडीह विकासखण्ड के बोरसी पंचायत में ग्रामीणों ने अनूठी पहल पर अपने सरपंच और पंचों का चुनाव घोषित तारीख से पहले ही करा लिया और चुनाव का संचालन खुद कर सरकार की फिजूलखर्ची रोक दी। यह अनोखी पहल कर कम पढ़े-लिखे लोगों ने चुनाव खर्च के नाम पर पैसे बहाने वाले तंत्र को आईना दिखाया है। 

8 जनवरी को नामांकन का आखिरी दिन था। 9 जनवरी को नामांकन वापसी की तारीख थी और 10 जनवरी को उम्मीदवारों को चुनाव चिन्हों का आवंटन कर दिया गया। पंचायत चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज थी। पंच-सरपंच के लिए दावेदारों ने नामांकन जमा कर दिए थे इसी बीच गांव की सरकार चुनने की बात आई तो गांव में हवा की दिशा ही बदल गई तथा गांव के बुजुर्गो ने 7 जनवरी को आपसी सलाह मशवरा करके ग्राम के बैगा चैक में बैठक के लिए मुनादी करा दी। बैठक में सभी लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया जहां गांव के लोगों ने एक साहसिक कदम उठाते हुए मतदान से पहले ही गांव में मतदान कराने का निर्णय लेते हुए शपथपत्र तैयार किया और मतदाताओं ने हस्ताक्षर कर मतदान की तारीख नाम वापसी के ठीक एक दिन पहले 9 जनवरी तय की। 9 जनवरी को सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक ग्राम के ही स्कूल में मतदान कराया गया। जिसमें बोरसी के कुल 1013 मतदाताओं में से 855 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। जिसके बाद हुए मतगणना में श्रीमती चंपादेवी रोहित चंद्रा को 628 और श्रीमती शांति चंद्रा को 401 मत प्राप्त हुए। इसी प्रकार सभी 13 वार्ड पंच का परीणाम भी घोषित किया गया। इस तरह बोरसी ग्राम पंचायत के ग्रामीणों ने आपसी भाईचारा का अनूठा मिसाल पेश करते हुए तारीख से पहले ही सरपंच और पंचों का चुनाव कर लिया। सारी चुनाव प्रक्रिया पारदर्शिता के साथ पूरी की गई, इसलिए किसी ने इस पर आपत्ति नहीं उठाई। जनपद पंचायत बम्हनीडीह के सीईओ एम.एल. महादेवा ने बताया कि बोरसी पंचायत में अब सरपंच और सभी पंच निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिए गए तथा यहां चुनाव कराने की जरूरत नहीं रह गई क्योंकि उसके बाद जीतने वाले उम्मीद्वार ही चुनाव मैदान में शेष बचे तथा शेष उम्मीद्वारों ने अपने नाम वापस ले लिए। ऐसा करने से शासन को यहां पर पंच और सरपंच चुनाव कराने की जरूरत नहीं पड़ी वहीं प्रत्याशियों के चुनाव में होने वाले खर्च भी बच गए।

विकास के लिए समर्पित रहूंगी - श्रीमती चंद्रा

नवनिर्वाचित सरपंच श्रीमती चंपादेवी चन्द्रा ने पंचायत की मुस्कान से बातचीत करते हुए कहा कि जिस विश्वास के साथ यहां के जागरूक मतदाताओं और प्रबुद्ध नागरिकों ने एक अनूठी पहल करते हुए मतदान से पहले ही चुनाव कराया और मुझे विजयी बनाया इस पर मैं खरा उतरने का प्रयास करूंगी, साथ ही गांव के विकास के लिए सदैव सेवा भावना के साथ कार्य करना मेरी पहली प्राथमिकता होगी।

मध्यप्रदेश का एक गांव जहां सरपंच पद के लिए लगती है बोली

ढाबला महेश में रामद्वारा निर्माण में लगाते हैं राशि

राजेश सिंह क्षत्री



‘‘आठ लाख एक, आठ लाख दो, आठ लाख तीन ...। सरपंच पद के लिए सबसे ज्यादा आठ लाख की बोली दुलेसिंह ने लगाई है इसलिए पांच साल के लिए हम दुलेसिंह को गांव का सरपंच बनाते हैं। दुलेसिंह आठ लाख दे और सरपंच का पद अपने साथ अपने घर ले जाए।’’ क्या आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि सरपंच का चुनाव इस तरह से भी हो सकता है। शायद इस बात की आपको कल्पना भी नहीं होगी लेकिन ऐसा हकीकत में होता है। वो भी आपके पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के एक गांव में। इस गांव में सरपंच और उपसरपंच पद के लिए बकायदा बोली लगती है तथा इस बोली में गांव के सभी लोग शामिल होते हैं और जिसकी बोली सबसे ज्यादा रहती है उसे ही सरपंच का पद दे दिया जाता है। गांव के लोग बोली से प्राप्त राशि को रामद्वारा निर्माण में लगाते हैं वहीं सरपंच चुनाव लड़ने के शौकीनों को भी लगता है कि लाखों रूपए खर्च करने के बाद चुनाव में हारने से तो अच्छा है कि बोली में भाग लेकर अपनी किस्मत आजमा ली जाए। क्योंकि यहां रकम गंवाने की जोखिम जो नहीं रहती। 

देश का हृदय स्थल माने जाने वाले मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले का एक गांव। गांव के चैपाल में सारे ग्रामवासी जमा है। इस गांव के लोगों के लिए आज का दिन खास है क्योंकि आज इस गांव में बोली लगनी है। यह बोली इस मायने में भी खास है कि बोली सरपंच के पद के लिए लगने वाली है। गांव के बाहर के लोगों के लिए इस चैपाल की गतिविधियां उत्सुकता का विषय हो सकती है लेकिन गांव के लोगों के लिए तो यह सामान्य सी बात है क्योंकि यहां इससे पहले भी दो बार ऐसी ही चैपाल आयोजित की जा चुकी है तथा इससे पहले भी दो बार ऐसी ही बोली के माध्यम से उनके गांव का मुखिया चुना जा चुका है। इस गांव में पहली बार 2005 में सरपंच पद के लिए बोली लगाए जाने की शुरूआत हुई थी तब गांव के बद्रीसिंह गोकुल सिंह ने सबसे ज्यादा 75 हजार रूपए की बोली लगाई थी और वो सरपंच चुने गए थे। तब इस गांव के लोगों को बहुत ज्यादा इसके बारे में पता नहीं था, इसलिए बोली की राशि कम लगी थी। लेकिन उसके पांच साल बात जब पंचायत चुनाव हुए तब एक बार फिर से इसी चैपाल पर सारे ग्रामवासी इकट्ठा हुए और बोली लगी तो यह आंकड़ा लगभग पांच गुना ज्यादा बढ़ गया और साढ़े तीन लाख रूपए में बोली समाप्त हुई। अब उस घटना को भी पांच साल हो गया है। ऐसी स्थिति में एक बार फिर से गांव में सरपंच चुनने के लिए चैपाल पर सारे लोग इक्ट्ठा हुए हैं। यहां सरपंच के साथ-साथ उपसरपंच, पंच और जनपद सदस्य के लिए भी बोली लगाई जाएगी। जनपद सदस्य के पद के लिए किसी प्रत्याशी को एक गांव से चुना जाना संभव नहीं है इसलिए उसकी बोली थोड़ी भिन्न तरह की होगी तथा उसमें सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले व्यक्ति को गांव के सभी लोग वोट करेंगे। बाकि की बोली उनके गांव में ही संपन्न हो जाएगी तथा उसमें सबसे ज्यादा बोली लगाने वाला व्यक्ति सरपंच, उपसरपंच और वार्ड पंच चुना जाएगा।

सरपंच के लिए पांच साल पहले साढ़े तीन लाख की बोली लगी थी इसलिए सबको पता है कि इस बार बोली उससे ज्यादा में ही छूटेगी, लेकिन कितना इसका पता किसी को भी पता नहीं है। बोली प्रारंभ होती है, बोली लगाने के लिए लोग धीरे-धीरे सामने आने लगते हैं। इस बोली के माध्यम से गांव में एक अच्छी खासी आय हो जाएगी जिसका उपयोग अंतराष्ट्रीय रामसनेही संप्रदाय के रामद्वारा निर्माण के लिए दे दी जाएगी। गांव के लोगों को लगता है कि अच्छा रामद्वारा बनेगा तो गांव में बाहर से लोग भी आयेंगे तथा उनके गांव के लोगों की भी तारीफ होगी। सरपंच पद के लिए बोली धीरे-धीरे बढ़ रही है तथा आंकड़ा पांच लाख को पार कर गया है। कुछ लोग बोली लगाना छोड़ चुके हैं तो कुछ अभी भी सरपंच बनने का ख्वाब संजोए बोली लगाए जा रहे हैं। साढ़े पांच लाख, छः लाख, साढ़े छः लाख, सात लाख, साढ़े सात लाख, आठ लाख। आठ लाख एक, आठ लाख दो, आठ लाख तीन ....। सबसे ज्यादा आठ लाख की बोली गांव के दुलेसिंह पिता गोकुल सिंह ने लगाई है। अब सुवासरा तहसील के ढाबला महेश गांव में सरपंच पद के लिए आठ लाख रूपए लगाकर दूलेसिंह पिता गोकुल सिंह इस गांव के सरपंच चुने गए। चैपाल में बैठे प्रतिनिधियों ने आठ लाख रूपए में दुलेसिंह के सरपंच बनने की घोषणा की और उसके बाद दुलेसिंह को बधाई देने वालों का तांता लग गया। अभी सरपंच के लिए मध्यप्रदेश के दूसरे गांवों में नामांकन की प्रक्रिया भी शुरू नहीं हो पाई है लेकिन इस गांव के लोगों ने बकायदा अपना सरपंच चुन लिया है। अब इस गांव से एकमात्र दुलेसिंह ही अपना नामांकन जमा करेगा तथा वही इस गांव का सरपंच चुना जाएगा। ढाबला महेश का नया सरपंच दुलेसिंह।

इसी तरह से गांव में अन्य पदों के लिए भी बोलियां लगाई गई। लेकिन अन्य पदों केलिए वैसी उत्सुकता और वैसी गहमा-गहमी नहीं देखी गई तथा अन्य सभी पदों को लेकर राशि दो लाख रूपए नहीं पंहुचा। उपसरपंच के पद के लिए 21 हजार रुपए तक ही बोली पंहुच पाई और गांव के मानसिंह अमरसिंह उपसरंपच चुने गए। वहीं प्रत्यके वार्ड के लिए दो-दो हजार रूपए तय किए गए तो वहीं जनपद सदस्य के लिए 26 हजार रूपए की बोली लगी। ग्रामीणों का कहना है कि ईमानदारी से पूरी राशि ग्राम धलपट में रामद्वारा निर्माण में लगाई जा रही है। लगभग 2500 की आबादी वाले सुवासरा तहसील के ग्राम ढाबला महेश में दुलेसिंह पिता गोकुलसिंह ने सर्वाधिक 8 लाख रुपए की बोली लगाकर अगले पांच साल तक सरपंच बनने की उपलब्धि हासिल की।


बोली से तीसरी बार चुना गया सरपंच

ग्राम में यह प्रथा नई नहीं है। सबसे पहले 2005 के चुनाव में भी बोली लगी थी। तब 75 हजार रुपए में बद्रीसिंह गोकुलसिंह सरपंच बने। इसके बाद 2009 में 3.50 लाख रुपए में गीताबाई रामसिंह को सरपंची मिली। वहीं अब यह मौका दुलेसिंह या उनके परिजनों में से एक को मिलेगा। इसके साथ ही उप सरपंच की बोली 21 हजार रुपए में मानसिंह अमरसिंह के खाते में गई। वहीं प्रत्येक वार्ड के पंच भी 2-2 हजार रुपए तय कर दिए गए।

जपं सदस्य ने लगाए 26 हजार रुपए 

यह ग्राम पंचायत सीतामऊ जनपद पंचायत के अंतर्गत आता है जिसका क्षेत्र क्रमांक 18 है। क्षेत्र क्रमांक 18 में इस गांव के साथ-साथ अन्य गांव भी शामिल है इसलिए एक यहीं से जनपद सदस्य चुना जाना संभव नहीं है लेकिन यहां सबसे अधिक राशि देने वाले व्यक्ति के खाते में गांव के सभी वोट जायेंगे इसलिए इस पद हेतु भी बोली लगाई जा रही है। यहां से दावेदार मांगीलाल पिता रतनलाल ने भी ग्राम में सभी मत के लिए 26 हजार रुपए देने की घोषणा की है, इस तरह से सरपंच पद के बाद सबसे अधिक 26 हजार की बोली जनपद सदस्य के लिए दिए जायेंगे। अब इस गांव के सारे वोट थोक में मांगीलाल को मिलने के बाद अन्य प्रत्याशियों के मुकाबले उसकी स्थिति ज्यादा मजबूत है। नीलामी से प्राप्त यह सारी राशि अंतरराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के रामद्वारा निर्माण में दी जाएगी।

पहले पैसे, फिर नामांकन


गांव में बोली समाप्त हो चुकी है। अब पहले सरपंच, पंच व अन्य से बोली की राशि ली जाएगी उसके बाद ही उन्हें नामांकन भरने दिया जाएगा। यह राशि रामद्वारा की समिति को दी जाती है।

आपसी प्रेम बना रहेगा

गांव की वर्तमान सरपंच गीताबाई रामसिंह गुर्जर ने बताया कि इसके पीछे हमारी सोच यह है कि गांव में मतदान होगा तो आपसी कटुता भी बढ़ेगी। ऐसे में निर्विरोध निर्वाचन से सबमे प्रेम भी बना रहता है और चुनाव के समय शराब बंटने व अन्य दुष्प्रवृतियों से भी बच जाते हैं। सारा रुपया रामद्वारा निर्माण में लगाते हैं। वहीं भविष्य के लिए गांव के सरपंच चुने जाने वाले दुलेसिंह गोकुलसिंह गुर्जर कहते हैं कि रामद्वारा अच्छा बनेगा तो बाहर के लोग भी आएंगे। हमारे ही गांव का नाम होगा।